रक्तदान कर मरीज की जान बचाने पहुंचे 104 डोनर को लगा झटका, जांच में मिली ऐसी गंभीर बीमारी की उड़ गए होश

रक्तदान महादान कहा जाता है। यह सच भी है। संजय गांधी अस्पताल में ब्लड बैंक में हुए रक्तदान से सालभर में 12 हजार 57 मरीजों की जान बचाई गई। इतना ही नहीं यहां पहुंचने वाले 104 डोनरों की जांच ने समय रहते गंभीर बीमारियों से भी परिचय कराया और उनका इलाज शुरू हो गया। 22 डोनर खुद एचआईवी पॉजिटिव मिले। 64 को हेपेटाइटिस बी और 18 को हेपेटाइटिस सी जैसी गंभीर बीमारियों ने जकड़ रखा था। सभी का इलाज शुरू हो गया।

रक्तदान कर मरीज की जान बचाने पहुंचे 104 डोनर को लगा झटका, जांच में मिली ऐसी गंभीर बीमारी की उड़ गए होश
File photo

22 डोनर एचआईवी पॉजिटिव मिले, 64 हेपेटाइटिस बी और 18 हेपेटाइटिस सी से पीडि़त मिले
संजय गांधी अस्पताल के ब्लड बैंक में सालभर में जमा हुआ 10 हजार से अधिक यूनिट ब्लड
12 हजार से अधिक मरीजों की बचाई गई खून उपलब्ध कराकर जान
रीवा। किसी भी अस्पताल का ब्लड बैंक ही उसकी जान होता है। ब्लड बैंक बैक सपोर्ट का काम करता है। अस्पताल में पहुंचने वाले मरीजों की जिंदगी बचाने में अहम भूमिका निभाता है। संजय गांधी अस्पताल का ब्लड बैंक भी ऐसा है। विंध्य का सबसे बड़ा ब्लड बैंक है। इस ब्लड बैंक के भरोसे ही विंध्य के कई मरीजों की जान बचाई जाती है। यदि बात वर्ष 2024 की करें तो एक साल में यहां 10 हजार 284 यूनिट ब्लड का कलेक्शन हुआ था। इसमें से 89.69 फीसदी ब्लड स्वैच्छिक रक्तदान से पहुंचा। ब्लड बैंक में पहुंचे कई रक्तदाओं ने रक्तदान शिविर में शामिल हुए तो कईयों ने अस्पताल पहुंच कर दान दिया। रक्तदान करने वालों की मंशा स्पष्ट थी। उन्हें सिर्फ मरीजों की जान बचानी थी लेकिन कई रक्तदाताओं को रक्तदान के बाद ही उनके पल रही बीमारियों का भी पता चला। इनके ब्लड तो किसी के काम नहीं आए लेकिन अब उनका इलाज जारी है। ब्लड डोनेशन ने उनकी बीमारियों की पहचान कराकर उनका इलाज शुरू करा दिया है।


मरीजों को नि:शुल्क ब्लड उपलब्ध कराया गया
संजय गांधी अस्पताल में दिन रात मरीज पहुंचते हैं। यहां की एमरजेंसी हर समय फुल ही रहती है। कई एक्सीडेंट में घायल मरीज भी पहुंचते हैं, जिनके आसपास परिजन भी नहीं होते। ऐसे में इन मरीजों को आपरेशन के दौरान ब्लड की जरूरत होती है। इसकी पूर्ति भी ब्लड बैंक करता है। एक साल में एक्सीडेंट में घायल मरीजों की जान बचाने के लिए 1347 यूनिट ब्लड दिया गया। इसी तरह कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी से जूझ रहे मरीजों को 1183 यूनिट ब्लड दिया गया। गायनी विभाग में कई गर्भवती महिलाएं पहुंचती है। जिनका हिमोग्लोबिन कम होता है। एनीमिक होती है। इन्हें भी नि:शुल्क ब्लड उपलब्ध कराया जाता है। 1553 यूनिट ब्लड गर्भवती महिलाओं को दिया गया है। अब इन आंकड़ों से ही ब्लड की कीमतों का अंदाजा लगाया जा सकता है।
किडनी ट्रांसप्लांट, बायपास सर्जरी में अहम भूमिका
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट जैसे आपरेशन शुरू हो गए हैं। ओपन हार्ट सर्जरी की जा रही है। इन सर्जरी में ब्लड बैंक की भूमिका अहम रहती है। सर्जरी में एक साथ कई यूनिट ब्लड लगते हैं। मरीज के ग्रुप के हिसाब से ब्लड की उपब्धता सुनिश्चित करना भी बड़ा चैलेंजिंग वाला काम होता है। किडनी ट्रांसप्लांट में एक आपरेशन में 10 से 12 यूनिट तक ब्लड लगता है। इसी तरह ओपन हार्ट सर्जरी में भी 8 से 10 यूनिट ब्लड लग जाता है। यह भी ब्लड बैंक ही उपलब्ध कराता है। तब जाकर आपरेशन सफल हो पाता है।
लोग जागरुक नहीं है इसलिए परेशानियां उठानी पड़ती है
रक्तदान को लेकर अभी भी लोग जागरुक नहीं है इसके कारण कई मर्तबा ब्लड बैंक में खून की कमी हो जाती है। रक्तकोस खाली हो जाता है। कई भ्रांतियां लोगों के मन में बसी हुई है, जो दूर नहीं हो पा रही हैं। इसी वजह से लोग अपनों को भी खून देने से कतराते हैं। बेटा पिता को तो पिता बेटे को ब्लड देने से गुरेज करता है। इसके कारण परिजन ब्लड की तलाश में इधर उधर भटकते हैं। लोग रक्तदान से भी दूरी बनाते हैं। देहदान को लेकर तो लोग जागरुक हो गए हैं लेकिन रक्तदान को लेकर जागरुकता अभी पूरी तरह से नहीं आ पाई है।
बाक्स....
एसजीएमएच के ब्लड बैंक पर एक नजर
ब्लड कलेक्शन            -    10,284 यूनिट
स्वैच्छिक रक्तदाता      -    89.69 फीसदी
ब्लड ग्रुपिंग               -    21027
ब्लड इश्यू हुआ          -     12057 यूनिट
गर्भवती महिलाएं को   -    1553 यूनिट
एक्सीडेंटल मामलों में  -     1346 यूनिट
कैंसर पेसेंट को           -    1183 यूनिट
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ब्लड डोनर जांच में मिले बीमार
एचआईवी पॉजिटिव         -    22
हेपेटाइटिस बी पॉजिटिव    -    64
हेपेटाइटिस सी पॉजिटिव    -    18
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एक साल में एसजीएमएच के ब्लड बैंक में 10 हजार 284 यूनिट ब्लड आया। इसमें स्वैच्छिक रक्तदाता 86 फीसदी से अधिक रहे। जिन रक्तदाताओं के जांच में बीमारियां सामने आती हैं। उन्हें काउंसलिंग के लिए भेज देते हैं। काउंसलिंग के बाद इलाज शुरू कर दिया जाता है।
डॉ लोकेश त्रिपाठी, प्रभारी
ब्लड बंैक, एसजीएमएच रीवा