मप्र में 11,717 बच्चे लापता हुए, इनमें 75 प्रतिशत लड़कियां
भारत में मानव तस्करी के चौकाने वाला खुलासा हुआ है। एनसीआरबी के अनुसार वर्ष 2022 में देश में 65 सौ से अधिक मानव तस्करी पीडि़तों की पहचान हुई है। इनमें सर्वाधिक 60 फीसदी महिलाएं और लड़कियां हैं। वहीं यदि मप्र की बात करें तो यहां आरटीआई से जुटाए गए रिकार्ड के अनुसार 11 हजार 717 बच्चे लापता हुए हैं। इनमें से 75 फीसदी संख्या लड़कियों की है। यह रिकार्ड चिंता का विषय है।
भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार 2022 के दौरान देश में 6,500 से अधिक मानव तस्करी पीडि़तों की पहचान की गई। जिनमें से 60 प्रतिशत महिलाएं और लड़कियां थीं। वहीं मध्यप्रदेश सरकार और पुलिस से एकत्र किए गए आरटीआई डेटा से पता चलता है कि राज्य में कुल मिलाकर 11,717 बच्चे लापता हुए, जिनमें से 8,844 (75 प्रतिशत) लड़कियां और 2,873 लड़के थे। कुल मिलाकर 2018 से 2022 तक इन पांच वर्षों के दौरान लापता लड़कियों का प्रतिशत 78 प्रतिशत से भी अधिक है।
इन शहरों में सबसे अधिक मामले आए सामने
सीआरवाई द्वारा जारी आरटीआई आधारित फैक्टशीट के अनुसार 2022 में इंदौर और भोपाल में लापता बच्चों के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए। इंदौर में लापता बच्चों के 977 मामले दर्ज किए गए, जबकि भोपाल में बच्चों के 661 मामले दर्ज किए गए। आंकड़ों से यह भी पता चला है कि लापता बच्चों के मामले ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में अधिक थे।
इनकी तस्करी के मामलों में 36 प्रतिशत की वृद्धि
मप्र में वर्ष 2021 में पंजीकृत बाल तस्करी में 36 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। 2020 में बाल तस्करी के मामलों की संख्या जो 33 थी, 2021 में बढ़कर 52 हो गई थी। लापता बच्चों की तस्करी का खतरा अधिक होता है। सीआरवाई के आरटीआई डेटा से पता चला है कि 2022 में 11,717 लापता बच्चों में से केवल 3,974 (34 प्रतिशत) पाए गए, जबकि 7,698 का पता नहीं चला।घरेलू नौकरों की बढ़ती मांग, व्यावसायिक यौन कार्य और घरेलू हिंसा इसका बड़ा कारण होती है। वहीं लापता लड़कों की संख्या भी गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि बाल श्रम के लिए इनकी तस्करी की जाती है।
13 से 18 वर्ष के बीच के बच्चे सबसे अधिक लापता
२०२२ में बाल तस्करी से बचाए गए 80 प्रतिशत बच्चों की उम्र 13 से 18 वर्ष के बीच थी। इस अवधि के दौरान 18 वर्ष से कम उम्र के 13,549 बच्चों को बचाया गया। बचाए गए लगभग 13 प्रतिशत बच्चे नौ से 12 वर्ष की आयु के थे और 2 प्रतिशत से अधिक नौ वर्ष से भी कम उम्र के थे। जनजातियों और आदिवासी समुदाय की लड़कियां अक्सर खाद्य असुरक्षा, अस्थिर आवास और कानूनी सुरक्षा की कमी के चलते मानव तस्करों का आसान निशाना बन जाती हैं, वे इन सभी कमजोरियों का फायदा उठाकर उन्हें बहकाते हैं, बरगलाते हैं और मजबूर करते हैं।