अक्षय आंवला नवमीं: आंवला के पेड़ के नीचे परिवार के साथ की पूजा अर्चना, भोजन बनाकर भगवान को लगाया भोग

रविवार को आंवला के पेड़ के नीचे लोगों की भीड़ नजर आई। लोगों ने आंवला के पेड़ के नीचे आग जलाई। भोजन बनाया। विष्णु भगवान की पूजा अर्चना की। भगवान को भोग लगाया। इसके बाद परिवार के साथ बैठकर भोजन किया।

विष्णु भगवान से लोगों ने मांगा सुख समृद्धि का आशीर्वाद
सांई मंदिर के पीछे उद्यान विभाग में लगी रही लोगों की भीड़
रीवा। जिले भर में रविवार को आंवला नवमीं आस्था, व श्रद्धा के साथ मनाई गई। इस दौरान तुलसी व्रत रखने वाली महिलाओं व युवतियों ने विभिन्न मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना की। जिन घरों की महिलाओं ने तुलसी व्रत रखे, वहां भी दिन भर धार्मिक माहौल बना रहा। जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में भी श्रद्धालुओं द्वारा पूजन कार्यक्रम किया गया। स्थानीय कोठी कंपाउंड, नेहरू नगर, बोदाबाग, दीनदयालधाम कॉलोनी, विंध्य विहार सहित अन्य स्थलों पर सुबह से ही शृंगारित व पारम्परिक परिधानों में सजी-धजी बालिकाएं, युवतियां व महिलाएं पूजन सामग्री लिए मंगल गीत गाती दिखाई दीं। सुबह ब्रह्मï मुहूर्त में स्नानादि से निवृत्त होकर उन्होंने ईष्टïदेव की स्तुति की और पारम्परिक परिधान व आभूषण पहनकर समूह के रूप में मंदिरों में दर्शन के लिए पहुंची। विवाहित महिलाओं ने सौभाग्यवती बने रहने और पति की दीर्घायु की प्रार्थना की, वहीं कुंवारी कन्याओं ने सुयोग्य वर की कामना की। इसकेअलावा कपूर व घी आदि से वृक्ष की आरती भी की गई। कई भक्तों ने आंवला पेड़ छाया में बैठकर भोजन किया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय नवमीं के दिन आंवले की वृक्ष की पूजा अनादि काल से चली आ रही है। कहा जाता है कि कार्तिक शुक्ल नवमीं से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ पर विराजमान रहते हैं। इस दिन पेड़ के साथ विधि विधान के साथ भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। यह भी मान्यता है कि इस दिन द्वापर युग का आरंभ हुआ था। कहा जाता है कि अक्षय नवमीं के दिन ही विष्णु भगवान ने कुष्माण्डक दैत्य का वध किया था।
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कल योगनिद्रा से जागेंगे भगवान विष्णु
कार्तिक मास की एकादशी 12 नवंबर को देव उठनी का त्योहार मनाया जाएगा, जिसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है। उसदिन भगवान विष्णु योगनिंद्रा से जागेंगे। बता दें कि भगवान आषाढ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसके बाद कार्तिक शुल्क पक्ष एकादशी को जागते हैं। शास्त्रों के अनुसार देवोत्थान एकादशी में उपवास का विशेष महत्व है। इस पर्व को करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। बताते हैं कि धर्मसिंधु के अनुसार एकादशी दो प्रकार की होती हैं, पहली विद्धा और दूसरी शुद्धा। यदि एकादशी तिथि दशमी तिथि से युक्त हो तो वह विद्धा एकादशी कही जाती है। यदि सूर्योदय के समय एकादशी तिथि द्वादशी तिथि से युक्त होती है तब वह शुद्धा एकादशी कही जाती है। सामान्य जन साधारण को शुद्धा एकादशी का व्रत रखना ही पुण्यदायक माना गया है।
बनेगा गन्ने का मंडप
देवोत्थान एकादशी के अवसर पर आंगन में चौक बनाकर उस पर गन्ने का मंडप तैयार किया जाता है। प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी/द्वादशी को भगवान विष्णु एवं तुलसी माता की कृपा पाने के लिए उनके विवाह का आयोजन घर-घर में किया जाता है। इस दिन तुलसी के पौधे के गमले को शुभमुहूर्त में गेरू आदि से सजा कर उसके चारों ओर ईख यानि गन्ने का मंडप बनाकर, उनका सुहाग की चुनरी-चूड़ी आदि से दुल्हन की भांति श्रंृगार किया जाता है। तत्पश्चात भगवान शालीग्राम का पूजन करते हुए तुलसी जी का मंत्र उच्चारण के साथ षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। मंडप में भगवान विष्णु को स्थापित कर उन्हें गन्ना, सिंघाडा और फल आदि का भोग लगाया जाता है। दीपक जला कर उनकी पूजा की जाती है। सुबह भगवान के चरणों को स्पर्श कर उन्हें जगाया जाता है। इसके बाद से सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।