अलका याग्निक से जुड़ी बुरी खबर सामने आ रही है, उन्हें इस बीमारी ने कर दिया बहरा

मशहूर सिंगर अलका याग्निक ध्वनि प्रदूषण का इस कदर शिकार हुई कि उनकी सुनने की क्षमता ही चली गई है। अब वह सुन नहीं पा रही है। संक्रमण ने उन्हें बहरा कर दिया है। उन्होंने इसकी जानकारी खुद ही इंस्ट्राग्राम में साझा किया है। इस खबर ने औरों को भी सचेह रहने के लिए अलर्ट कर दिया है। ध्वनि प्रदूषण किसी को भी बीमार बना सकता है।

अलका याग्निक से जुड़ी बुरी खबर सामने आ रही है, उन्हें इस बीमारी ने कर दिया बहरा
File photo

इंस्टाग्राम में साझा की बीमारी की जानकारी, बोलीं वह कुछ सुन नहीं पा रहीं
मुंबई। शरीर के हर अंग की तरह कान में भी कई तरह की समस्याएं होती हैं। आए दिन लोग कान के दर्द और संक्रमण से परेशान रहते हैं। हाल ही में बॉलीवुड की जानी मानी सिंगर अलका याग्निक को कान से जुड़ी ऐसी दुर्लभ बीमारी हो गई है, जिसके बारे में पहले शायद ही कभी किसी ने सुना हो। उन्होंने हाल ही में अपने इंस्टाग्राम पोस्ट पर अपनी बीमारी के बारे में बताया है। उन्होंने लिखा है कि जब मैं फ्लाइट से बाहर निकली, तो लगा कि मैं कुछ सुन नहीं पा रही हूं। डॉक्टर ने बताया है कि यह एक रेयर सेंसरी न्यूरल हियरिंग लॉस है, जो वायरल अटैक के कारण हुआ है। अल्का ने अपने पोस्ट में फैंस को इस बीमारी से बचने की सलाह दी है। बता दें कि सेंसेरिन्यूरल हियरिंग लॉस एक गंभीर बीमारी है। इसमें किसी व्यक्ति को धीमी आवाज सुनाई नहीं देती। वहीं तेज आवाज भी बहुत धीमी सुनाई देती है या सुनाई नहीं देती।
अलका याग्निक ने ध्वनि प्रदूषण से बचने की सलाह दी
अलका ने अपनी पोस्ट में सेंसेरिन्यूरल हियरिंग लॉस से बचने की सलाह दी है। इसके साथ उन्होंने ध्वनि प्रदूषण से बचने की भी सलाह दी है। दरअसल, हियरिंग लॉस की एक प्रमुख वजह ध्वनि प्रदूषण भी है। सेंसेरिन्यूरल हियरिंग लॉस की समस्या तब होती है, जब आपके कान की ऑडिटरी नर्व डैमेज हो जाए। 90 फीसदी मामलों में इसमें व्यक्ति को सुनाई देना बंद हो जाता है। कई बार यह समस्या तेज शोर, जेनेटिक या फिर उम्र बढऩे के कारण भी हो सकती है। दरअसल, हमारे भीतरी कान में कोक्ली एक महत्वपूर्ण अंग है, जिस पर छोटे छोटे बाल होते हैं। इन्हें स्टीरियोसिलिया कहा जाता है। ये बाल साउंड वेव से आने वाली वाइब्रेशन को न्यूरल सिग्नल में बदल देते हैं। इससे 85 डेसिबल से ज्यादा तेज आवाज के संपर्क में आने से इन बालों को नुकसान पहुंचता है। बता दें जब तक 30-50 फीसदी बाल डैमेज नहीं हो जाते, तब तक लोगों को बीमारी का पता ही नहीं चलता।