खतरनाक वायरल जो मच्छरों से फैल रहा, इलाज भी नहीं अब तक 6 बच्चों की मौत

बच्चों में एक खतरनाक वायरस फैल रहा है। इस वायरस की चपेट में आने से 5 दिन में 6 बच्चों की मौत हो चुकी है। अब तक इस वायरस का इलाज भी नहीं तलाशा जा सका है। वायरस को लेकर सरकार चिंता में है।

वायरस से पीडि़त बच्चों के दिमाग में आ जाती है सूजन
चांदीपुरा वायरस मच्छर और मक्खियों से फैलता है
अहमदाबाद। गुजरात में चांदीपुरा वायरस के चलते 5 दिन में 6 बच्चों की मौत हो गई है। गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री ऋषिकेश पटेल ने बताया कि अभी तक राज्य में 12 बच्चे इस वायरस से इन्फेक्टेड हैं। इस वायरस का इन्फेक्शन 9 साल से 14 साल के बच्चों को ही होता है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टरों ने बताया कि चंदीपुरा वायरस से बच्चों में फीवर और फ्लू जैसे लक्षण दिखते हैं। इसके बाद इन्सेफेलाइटिस यानी दिमाग में सूजन तक हो सकती है, जो बच्चों की मौत का कारण बन सकती है। यह वायरस मच्छर और मक्खियों से इंसानों में फैलता है। ऋषिकेश ने बताया कि फिलहाल राज्य में 12 बच्चों में से 4 साबरकांठा, 3 अरावली, 1 महीसागर, 1 खेड़ा और 2 राजस्थान, 1 मध्य प्रदेश से हैं। सभी का इलाज गुजरात में अस्पतालों में चल रहा है। चांदीपुरा वायरस को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेश भर में अलर्ट जारी कर दिया है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है कि अगर किसी को इसके लक्षण दिखे तो तुरंत हॉस्पिटल जाएं।
नागपुर के चांदीपुरा में हुई थी इस वायरस की पहचान
1966 में नागपुर स्थित चांदीपुरा गांव में चांदीपुरा वायरस की पहचान हुई थी। चांदीपुरा वायरस सबसे अधिक मादा फ्लेबोटोमाइन मक्खी से ही फैलता है। मच्छर में एडीज ही इसके पीछे ज्यादातर जिम्मेदार है।
इस बीमारी का इलाज नहीं, घर में स्वच्छता जरूरी
वायरस का फिलहाल कोई इलाज नहीं मिला है। गुजरात स्वास्थ्य विभाग की ओर से कहा गया है कि कोई भी लक्षण देखने को मिले तो घबराए नहीं। तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। बारिश के समय में अच्छी सेहत, खाना-पीना और स्वच्छता रखना अनिवार्य है।
इन्फेक्शन से मस्तिष्ट में सूजन आ जाती है
वायरस संक्रमण के दौरान शरीर के माइक्रोगियल सेल्स में माइक्रो आरएनए-21 की संख्या बढऩे लगती है। कोशिकाओं में फोस्फेटेस और टेनसिन होमलोग (पीटीईएन) पदार्थ का सिक्रिशन कम हो जाता है। इससे इंसानों की माइक्रोग्लियल कोशिकाओं में न्यूक्लियर फैक्टर कापा लाइट-चैन-एनहांसर ऑफ एक्टिवेटिड बी सेल्स (एनएफ कप्पा बीपी65) या साइटोकाइन्स की सक्रियता बढ़ जाती है। इससे मस्तिष्क में सूजन हो जाती है। मरीज कोमा में चला जाता है। कई बार तो मौत हो जाती है।