देवशयनी एकादशी आज, 4 महीने विश्राम करेंगे भगवान, अब नहीं होंगे कोई शुभकार्य

बुधवार से चार महीने तक अब कोई भी शुभकार्य नहीं होंगे। भगवान चार महीने विश्राम करेंगे। बुधवार को देवशयनी एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। 12 नवंबर तक भगवान का शयनकाल चलेगा। इसके बाद ही देवउठनी एकादशी से शुभ कार्य शुरू होंगे।

देवशयनी एकादशी आज, 4 महीने विश्राम करेंगे भगवान, अब नहीं होंगे कोई शुभकार्य

12 नवंबर तक भगवान का शयनकाल चलेगा
देवउठनी एकादशी के बाद ही शुरू होंगे शुभ कार्य
रीवा। इस वर्ष 17 जुलाई बुधवार के दिन देवशयनी एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। यहीं से ज्योतिष के समस्त मंगल मुहूर्त समाप्त होंगे। साथ ही सन्यासियों का चातुर्मास प्रारंभ होगा और भगवान विष्णु शयन के लिए पाताल गमन करेंगे। हरिशयनी एकादशी 17 जुलाई से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी 12 नवंबर तक भगवान का शयन काल रहेगा। इस वर्ष हरिशयन काल की अवधि लगभग 4 माह की रहेगी। इस अवधि में व्रत नियमों का पालन करते हुए नित्य विष्णु स्रोत सहित विष्णु उपासना का विधान माना गया है।
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशी होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है, हालाकि इस वर्ष यह स्थिति नहीं है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। ज्योतिष की गणना के अनुसार सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये महत्वपूर्ण एकादशी आती है। इसी दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है।
4 महीने विवाह, गृह प्रवेश नहीं होंगे
पुराणों में वर्णन है कि भगवान विष्णु इस दिन से चार माह तक पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। इसी प्रयोजन से इस दिन को देवशयनी तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। इस काल में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृह प्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म है, वे सभी त्याज्य होते हैं। इस वर्ष 17 जुलाई से सभी प्रकार के मंगल मुहूर्त समाप्त हो जाएंगे, जो 4 माह बाद देवउठनी एकादशी के पश्चात पुन: प्रारंभ होंगे। भविष्य पुराण, पद्म पुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हरिशयन को योगनिद्रा कहा गया है। मान्यताएं हैं कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया। अत: उसी दिन से विष्णु भगवान चार मास तक क्षीरसागर में शयन करते हैं, और कार्तिक शुक्ल एकादशी को अपनी शक्तियों सहित जागृत होते हैं।
राजा बलि को दिया था वचन
पौराणिक मत हैं कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढंक लिया। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस महादान से भगवान ने प्रसन्न होकर बलि को पाताल लोक का अधिपति बना दिया और वर मांगने को कहा। बलि ने वर मांगा कि प्रभु आप मेरे महल में नित्य रहें। एकादशी से भगवान विष्णु जी द्वारा प्रदत्त वर का पालन करते हुए तीनों देवता 4-4 माह पाताल में निवास करते हैं, ऐसी मान्यताएं हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक पाताल में निवास करते हैं।
एकादशी का विशेष महत्व
ब्रह्मवैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन मिलता है। उल्लेख हैं कि इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यदि व्रती चातुर्मास का पालन विधिपूर्वक करे तो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष साधन चतुष्टय की प्राप्ति होती है। इस वर्ष 22 जुलाई से श्रावण मास आरम्भ होंगे। श्रावण मास का आरम्भ भी विशेष संयोग में हो रहा है। इस वर्ष श्रावण मास सोमवार को प्रारम्भ होंगे और सोमवार को ही समाप्त होंगे।