क्या आप जानते हैं रीवा के कमसरियत और मार्तण्ड स्कूल का इतिहास, नहीं तो चलिए हम बताते हैं
कमसरिएट एक अंग्रेजी शब्द है जिसे स्थानीय लोग कमसरियत के नाम से जानते हैं। इसका वास्तविक अर्थ है वह स्थान जहां सेना के लिए रसद की व्यवस्था हो। वैसे इस मोहल्ले को "बासिनपुरवा" नाम से जाना जाता था।
कमसरिएट ( कमसरियत)और डाइट रीवा से मार्तंड स्कूल क्रमांक 1 के वर्तमान स्वरूप तक का सफर
रीवा । यह जगह ऐतिहासिक रूप से इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी क्षेत्र में वर्तमान मार्तंड स्कूल क्रमांक 1 का प्रारंभ हुआ था। 1935 में शुरू होकर 1944 तक यह विद्यालय कमसरियत क्षेत्र में संचालित होता रहा और इसका भवन था एस आकार में निर्मित वर्तमान जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान अर्थात डाइट का भवन। उसके चारों तरफ कुल तीन खेल के मैदान थे जिनमें से एक पर शासकीय स्कूल
क्रमांक 1 और 2 निर्मित हैं । दूसरे मैदान पर वर्तमान सरस्वती स्कूल जेल मार्ग है और तीसरा मैदान था गुढ़ चौराहा की ओर का वर्तमान बाजार के रूप में तब्दील क्षेत्र। यहां पर वालीबाल बैडमिंटन आदि विभिन्न खेलों के साथ रनिंग ट्रेक इत्यादि विधिवत निर्मित कराए गए थे। विद्यालय के हेड मास्टर थे विंध्य के प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री और आचार्य रामचंद्र शुक्ल के करीबी कुंवर सूर्यबली सिंह। इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स हो जाने के बाद भी उन्हें काफी दिनों तक विद्यालय का हेड मास्टर बनाए रखा गया। हालांकि विद्यालय के विधिवत संचालन हेतु यहां हेडमास्टर क्रमांक 2 भी रखे गए थे।कुंवर सूर्य बली सिंह के पुत्र कुंवर रवि रंजन सिंह के अनुसार विद्यालय की ख्याति इस स्तर की थी कि कुंवर अर्जुन सिंह और डॉक्टर सज्जन सिंह जैसे उस समय के छात्र प्रयागराज के कान्वेंट स्कूल छोड़कर यहां पढ़ने आ गए थे। कुंवर अर्जुन सिंह शाही बग्घी से पंडित जी के साथ यहां पढ़ने आते थे
खैर..... तो मार्तंड स्कूल 1944 में यहां से अपने वर्तमान जगह पर स्थानांतरित हुआ। पहले यहां दरबार इंटर कॉलेज संचालित था जो बाद में वर्तमान ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय में परिवर्तित हुआ। मार्तंड स्कूल क्रमांक 1 वर्तमान में उत्कृष्ट विद्यालय के नाम से भी जाना जाता है। विद्यालय अपने आरंभिक काल से लेकर वर्तमान में भी रीवा शहर के एक प्रतिष्ठा पूर्ण शिक्षण संस्थान के रूप में जाना जाता है।और अब पीछे की ओर चलते हुए फिर से बात करते हैं कमसरियत की....। रीवा के पूर्व महाराजा भाव सिंह के कार्यकाल को शाहजहां के समान स्वर्णिम और समृद्ध माना जाता है। उनका विवाह महाराणा प्रताप की पड़पोती अजब कुंवरि के साथ हुआ था। कमसरियत परिसर में ही महारानी अजब कुंवरि की बावड़ी भी है, जो उपेक्षा और असुरक्षा के बावजूद उत्कृष्ट निर्माण और वास्तुकला के कारण एक दर्शनीय स्थल भी है। प्रसिद्ध साहित्यकार शिवमंगल सिंह सुमन के दादा इसी परिसर में रहते थे उनका स्मारक भी यहां पर मौजूद है। परिसर के एक हिस्से में शिक्षाविद कुंवर सूर्य बली सिंह एवं न्यायमूर्ति गुरुप्रसन्न सिंह के परिवार के लोग जहां निवास करते थे उसे मित्र मंदिर कहा जाता था ।
साभार - वरुणेंद्र प्रताप सिंह
लेखक पीके सीएम राइज स्कूल रीवा के प्राचार्य हैं।