तीन साल बाद टीआरएस के पूर्व प्राचार्य डॉ रामलला हुए बहाल

टीआरएस कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ रामलला शुक्ल तीन साल बाद बहाल हो गए। उनकी नई पदस्थापना बुढ़ार कॉलेज में की गई है। प्राचार्य पद पर रहते हुए 14 करोड़ रुपए की आर्थिक अनियमितता का आरोप उन पर लगा। इस आरोप में वह निलंबित भी हुए। लंबी लड़ाई के बाद अब जाकर उन्हें राहत मिली है। हालांकि इसी सितम्बर माह में वह रिटायर भी हो जाएंगे।

तीन साल बाद टीआरएस के पूर्व प्राचार्य डॉ रामलला हुए बहाल
Order

रीवा। ज्ञात हो कि डॉ रामलला को 23 मार्च 2020 को सरकार बदलते ही टीआरएस प्राचार्य पद से हटा दिया गया था। इसके बाद उनके विरुद्ध लंबी जांच बैठा दी गई। इस जांच प्रतिवेदन के आधार पर उन्हें 28 अक्टूबर 2020 को निलम्बित कर दिया। साथ ही, नवम्बर 2020 में ईओडब्ल्यू को कलेक्टर ने प्रतिवेदन भेजा। जिसके आधार पर डॉ शुक्ल समेत टीआरएस के 19 लोकसेवकों के विरुद्ध वित्तीय अनियमितता का आरोप लगा। इस प्रकरण में डॉ शुक्ल को ईओडब्ल्यू के चालान पर जेल भी जाना पड़ा। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने विभागीय जांच का सामना किया। इस विभागीय जांच में डॉ शुक्ल का लिखित जवाब विभाग द्वारा लिया गया। डॉ शुक्ल के प्रति उत्तर के आधार पर अब विभाग ने उन्हें बहाली दे दी है। इस बहाली के साथ अब उनके सभी देयकों का भुगतान भी विभाग द्वारा किया जायेगा।
4 सदस्यीय समिति ने की थी जांच
प्रकरण के संबंध में बता दें कि महाविद्यालय की तत्कालीन प्राचार्य डॉ अर्पिता अवस्थी ने 13 जुलाई 2020 को कलेक्टर के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें डॉ शुक्ल पर कैशबुक संधारण न करने का आरोप लगाया। इस शिकायत के आधार पर कलेक्टर ने 7 अगस्त 2020 को तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की। इस समिति में एडी रीवा, सहायक संचालक, अन्य पिछड़ा वर्ग व कोषालय अधिकारी संयुक्त निदेशक शामिल रहे। जबकि जांच 4 सदस्यीय टीम ने की, जिसमें सहायक संचालक, अन्य पिछड़ा वर्ग नहीं रहे बल्कि बिना किसी आदेश के दो बाहरी सदस्य अभयराज ङ्क्षसह, व ग्रेड-3 पुष्पराज सिंह ने समिति में रहकर जांच कर दी। इस समिति ने कैशबुक संधारण को छोड़कर महाविद्यालय के आंतरिक मूल्यांकन परीक्षा कार्यवाही की जांच कर डाली और उसमें संलग्न शिक्षकों व कर्मचारियों को दोषी ठहराया।
अध्यादेश 129 के तथ्य को छुपाया
डॉ शुक्ल ने अपने जबाब में विभाग को बताया कि ऑटोनामस टीआरएस महाविद्यालय का अपना अध्यादेश 129 है। जिसके आधार पर इसका संचालन होता है। जांच समिति ने इसी तथ्य को छुपा लिया और मनमर्जी आंतरिक मूल्यांकन परीक्षा कराने व उसके भुगतान का आरोप लगा दिया। यदि यह जांच यूजीसी के जांच दल द्वारा की जाती तो यह स्थिति नहीं बनती। चूंकि यह परीक्षा महाविद्यालय में सत्र 2003-04 से संचालित हो रही है, इसलिए उसका पालन भी उन्होंने अपने कार्यकाल में किया। इस उत्तर से संतुष्ट होकर विभाग ने डॉ शुक्ल को राहत प्रदान की।

राजनीतिक साजिश में बुरी तरह उलझे 

डॉ शुक्ल जिले के सत्ताधारी नेता के निशाने पर रहे, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। हालाकि निलंबित होने के बाद वह कभी शांत नहीं बैठे। चूकि वह स्वयं आरएसएस से लंबे समय तक जुड़े रहे, इसलिए वह अपना पक्ष शासन स्तर पर रखने में सफल हुए। वही नुकसान पहुंचाने वाले नेता जी को भी परेशान करते हुए उनका निजी विकास रोकने की कोशिश करते रहे। मंत्रिमंडल विस्तार में देरी का एक कारण यह भी रहा।