टीआरएस के पूर्व प्राचार्य ने पत्रकार्ता कर फिर फोड़ा बम, जांच पर ही उठाए सवाल
टीआरएस कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ रामलला शुक्ला तीन साल बाद बहाल हुए। अब रिटायरमेंट के बाद उन्होंने पत्रवार्ता कर पूरी कार्रवाई पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। उन्होंने जांच पर सवाल खड़े किए हैं। डॉ रामलला ने कहा कि जो जांच कलेक्टर की कमेटी ने की वह यूजीडी के नार्मस के तहत पात्र ही नहीं थी। जांच के दौरान भी गड़बड़ी की गई। प्रस्तुतकर्ता अधिकारी ने अध्यादेश 129 की जानकारी जांच समिति के सामने आने ही नहीं दी। कई रिकार्ड भी प्रस्तुत किए।
रीवा। शासकीय ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय में करोड़ों रुपये की वित्तीय अनियमितता का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है। इस मामले में ईओडब्ल्यू द्वारा मुख्य आरोपी बनाये गए पूर्व प्राचार्य डॉ रामलला शुक्ल ने सोमवार को प्रेसवार्ता की। वार्ता में डॉ शुक्ल प्रकरण से संबंधित तथ्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि कलेक्टर के निर्देश पर जो जांच समिति बनाई गई, वह यूजीसी के अधिनियम पर संचालित महाविद्यालय की जांच करने के योग्य नहीं थी। यह बात विभागीय जांच में भी रखी गई। विभागीय जांच में इन्हीं तथ्यों को प्रस्तुत किया गया। इस विभागीय जांच की समिति में उच्च शिक्षा के वरिष्ठ अधिकारियों समेत यूजीसी के अधिकारी भी रहे, जिन्होंने अध्यादेश 129 के तहत संचालित महाविद्यालय की अंातरिक मूल्यांकन परीक्षा पर प्रश्नचिन्ह नहीं खड़ा किया। जबकि कलेक्टर के बाबुओं द्वारा की गई पूरी जांच इतने तक ही सीमित रही। इतना ही नहीं, प्रस्तुतकर्ता अधिकारी प्राचार्य व जांच दल के संयोजक ने अध्यादेश 129 की जानकारी जांच समिति के सामने आने ही नहीं दी। आरटीआई पर जानकारी चाही गई तो आरोपियों को अध्यादेश 129 की जानकारी भी नहीं दी, जबकि अन्य दूसरे लोगों के माध्यम से लेने पर यह जानकारी दे दी गई। डॉ शुक्ल ने कहा कि प्रदेश के दो ही महाविद्यालय हैं, जो अपने बनाए अध्यादेश पर संचालित हैं। इनमें से एक टीआरएस कॉलेज है, जहां वर्ष 2002 में अध्यादेश 129 का निर्माण हुआ। इस अध्यादेश के तहत ही आंतरिक मूल्यांकन परीक्षा का भुगतान होता रहा। 2 बार नैक टीम, बार यूजीसी की टीम व प्रत्येक वर्ष ऑडिट दलों की जांच में कभी इस भुगतान को अनियमित नहीं माना। केवल कलेक्टर द्वारा कराई गई जांच में तथ्यों को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया, जिसका खामियाजा महाविद्यालय के अन्य शिक्षकों को भ्ुागतना पड़ रहा है।