पूर्व डीन डॉ सारस्वत को कोर्ट से लगा झटका, राहत तो नहीं मिली उल्टा पेनाल्टी लग गई
पूर्व डीन डॉ देवेश सारस्वत को विधानसभा में मुद्दा उठने के बाद पद से हटा दिया गया था। उन्होंने इसे हाईकोर्ट में चैलेंज किया था। कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए याचिका को ही डिस्मिस कर दिया। साथ ही याचिकाकर्ता पर 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। जुर्माने की राशि न भरने पर कोर्ट ऑफ कंटेम्पट के आदेश दिए हैं।
रीवा। ज्ञात हो कि श्याम शाह मेडिकल कॉलेज में डीन के पदस्थ डॉ देवेश सारस्वत पदस्थ थे। उन्होंने विधानसभा में मुद्दा उठने के बाद हटा दिया गया था। डॉ मनोज इंदूलकर को डीन की कुर्सी पर बैठा दिया गया। इसी आदेश के खिलाफ डॉ देवेश सारस्वत हाईकोर्ट गए थे। उन्होंने याचिका क्रमांक डब्लूपी 7365/2023 के तहत आदेश को चैलेंज किया था। उन्होंने प्रमुख सचिव मप्र सरकार, कमिश्नर, मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट भोपाल, डीन श्याम शाह मेडिकल कॉलेज रीवा, डॉ मनोज इंदूरकर प्रोफेसर मेडिसिन विभाग को पार्टी बनाया था। डॉ सारस्वत ने कोर्ट में तर्क रखा था कि उन्हें गलत तरीके से पद से हटा दिया गया। जिन्हें डीन बनाया गया है उन पर रिटायर्ड एकाउंटेंट बीके शुक्ला की पेंशन रोके जाने पर दो इंक्रीमेंट रोकने की कार्रवाई झेलनी पड़ी थी। उन्होंने कोर्ट में यह भी तक रखा कि कुछ राजनीतिक रसूख रखने वाले उनसे गलत काम कराना चाहते थे। बिना काम के लिए शासन की फंड रिलीज करने का दबाव दे रहे थे। जिसे उन्होंने मानने से इंकार कर दिया था। यही वजह है कि उनके खिलाफ बार बार विधानसभा में सवाल लगाए जा रहे थे। कोर्ट ने याचिका की सुनवाई करते हुए प्रतिवादी संख्या चार यानि डाक्टर इंदूरकर को प्रभार सौंपना सही है मुद्दे पर कहा कि मामूली दंड के आदेश की गंभीरता/शुद्धता के संबंध में प्रतिवादी के वकील द्वारा की गई दलीलों का सवाल है, चूंकि यह इस याचिका का विषय नहीं है, इसलिए यह न्यायालय कोई भी टिप्पणी करने के लिए इच्छुक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि जहां तक प्रतिवादी संख्या 4 को डीन, श्याम शाह मेडिकल कॉलेज, रीवा के पद का वर्तमान प्रभार देने का संबंध है, यह उत्तरदाताओं/राज्य का स्वयं का रुख है कि मामूली जुर्माना नहीं लगाया गया था। किसी भी नैतिक अधमता से जुड़े आरोप पर प्रतिवादी संख्या 4। अन्यथा भी, यदि उस आरोप पर विचार किया जाए जिसके आधार पर संचयी प्रभाव के बिना वेतन वृद्धि रोकने का मामूली जुर्माना लगाया गया है, तो राज्य का यह रुख सही प्रतीत होता है कि प्रतिवादी नंबर 4 के खिलाफ नैतिक अधमता से जुड़ा कोई आरोप नहीं था। .मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता पर विचार करते हुए, इस न्यायालय की सुविचारित राय है कि याचिकाकर्ता द्वारा मामले में हस्तक्षेप की आवश्यकता वाला कोई मामला नहीं बनता है। कोर्ट ने कहा कि चूकि याचिकाकर्ता द्वारा विधानसभा की कार्यवाही के साथ-साथ अध्यक्ष और विभिन्न अन्य व्यक्तियों के खिलाफ निराधार आरोप लगाए गए थे, इसलिए याचिकाकर्ता द्वारा जमा किए जाने वाले 20,000/- रुपये (केवल बीस हजार रुपये) के जुर्माने के साथ याचिका खारिज की जाती है। आज से एक महीने की अवधि के भीतर इस न्यायालय की रजिस्ट्री में, ऐसा न करने पर रजिस्ट्रार जनरल न केवल लागत की वसूली के लिए कार्यवाही शुरू करेगा, बल्कि न्यायालय की अवमानना के लिए मामला भी दर्ज करेगा।