Gaddi puja: दशहरा के एक दिन पहले हो गई किला में गद्दी पूजा, टूट गई 400 साल की परंपरा

इस मर्तबा किला में गद्दी पूजा दशहरा के एक दिन पहले ही हो गई। गद्दी पूजा बड़े धूमधाम से मनाया गया। महाराजा पुष्पराज सिंह ने महाराजाधिराज को गद्दी पर बिठाया और परिवार के साथ पूजा अर्चना की। गद्दी पूजा के बाद अब मंगलवार को किला से एनसीसी मैदान तक शोभा यात्रा निकाली जाएगी।

Gaddi puja: दशहरा के एक दिन पहले हो गई किला में गद्दी पूजा, टूट गई 400 साल की परंपरा

रीवा। वैसे तो हर साल दशहरा के दिन ही किला में गद्दी पूजा का आयोजन होता है। गद्दी पूजा के बाद यहां से चल समारोह निकाला जाता है। चल समारोह NCC मैदान तक निकाला जाता है। इसके बाद ही रावण दहन का आयोजन होता है। यह परंपरा करीब 400 साल पुरानी है। गद्दी पूजा के बाद महाराजाधिराज को चल समारोह में सबसे आगे रथ में विराजमान किया जाता है। उसके पीछे राजघराने की बग्घी होती है। उसमें महाराजा सवार होते हैं। यह चल सामारोह पूरे शहर से होकर गुजरती है। महाराजा धिराज के सभी दर्शन करते हैं। फिर महाराजाधिराज चल समारोह के जरिए सीधे एनसीसी मैदान पहुंचते हैं। उनके यहां पहुंचने के बाद ही रावण का दहन होता है। इस मर्तबा गद्दी पूजन एक दिन पहले हो गई। इसके पीछे नक्षत्रों का योग वजह बनी।


यह है गद्दी पूजन और चल समारोह का इतिहास
बघेल वंश ने  वर्ष 1617 में रीवा को राजधानी बनाई थी। रीवा राजघराना भगवान श्रीराम की जगह लक्ष्मण भगवान की पूजा करते है। रीवा को राजधानी बनाने के बाद महाराजा विक्रमादित्य सिंह जूदेव ने खुद गड्डी पर न बैठ कर अपनी जगह भगवान श्रीराम को राजाधिराज को गद्दी पर बिठाया था। महाराजा खुद प्रशासक के रूप में काम करते रहे। ऐसी मान्यता है कि विंध्य का हिस्सा श्री राम ने लक्ष्मण को सौंपा था। लक्ष्मण गद्दी पर नहीं बैठे थे। उसी परंपरा का पालन महाराजा जूदेव ने भी किया। वह भी गद्दी पर नहीं बैठे और प्रशासक के तौर पर काम करते रहे। महाराजा पुष्पराज सिंह ने इस बारे में कहा कि यह 350 साल पुरानी परंपरा है। बहुत ही अच्छी तरीके से यह परंपरा चल रही है।  राजाधिराज भगवान श्रीराम के हम भक्त है। उन्हें यहां का राजा मानते हैं। उनका आशीर्वाद लेकर ही यह पुण्यकार्य शुरू होता है।