हरतालिका तीज व्रत Aaj: जानिए कब है पूजा का शुभ मुहूर्त
हरतालिका तीज का व्रत हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत माना जाता हैं। तीज का त्योहार भाद्रपद मास शुक्ल की तृतीया तिथि को मनाया जाता हैं।
रीवा। हिदी भाषी पट्टी में कहीं-कहीं इसे गौरी तृतीया व्रत भी कहते हैं। यह व्रत भगवान शिव और पार्वती को समर्पित है। खासतौर पर नारियों द्वारा यह त्योहार मनाया जाता है। कम उम्र की लड़कियों के लिए भी यह हरतालिका का व्रत श्रेष्ठ समझा गया हैं। विधि-विधान से हरितालिका तीज का व्रत करने से जहां कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है, वहीं विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है। हरतालिका तीज में भगवान शिव, माता गौरी एवं गणेश जी की पूजा का महत्व हैं। यह व्रत निराहार एवं निर्जला किया जाता है। शिव जैसा पति पाने के लिए कुंवारी कन्या इस व्रत को विधि विधान से करती हैं। इस त्योहार के चलते रविवार को शहर से लेकर अंचलों तक के बाजारों मेंं खासी भीड़ रही। फल-फूल, पूजन सामग्री खरीदने महिलाओं की भीड़ पूरे दिन खरीदारी में व्यस्त रही।
दो शब्दों के मेल से बना
यह दो शब्दों के मेल से बना माना जाता है हरत एवं आलिका। हरत का तात्पर्य हरण से लिया जाता है और आलिका सखियों को संबोधित करता है। मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती की सखियां उनका हरण कर उन्हें जंगल में ले गई थीं। जहां माता पार्वती ने भगवान शिव को वर रूप में पाने के लिये कठोर तप किया था। तृतीया तिथि को तीज भी कहा जाता है। हरतालिका तीज के पीछे एक मान्यता यह भी है कि जंगल में स्थित गुफा में जब माता भगवान शिव की कठोर आराधना कर रही थीं तो उन्होंने रेत के शिवलिंग को स्थापित किया था। मान्यता है कि यह शिवलिंग माता पार्वती द्वारा हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि को स्थापित किया था, इसी कारण इस दिन को हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है।
ऐसी है पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती के कठोर तप से उनकी दशा बहुत खराब रहने लगी थी, उनके पिता उनकी इस दशा से काफी परेशान थे। एक दिन नारद जी ने उन्हें आकर कहा कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं। नारद मुनि की बात सुनकर गिरीराज बहुत प्रसन्न हुए। उधर भगवान विष्णु के सामने जाकर नारद मुनि बोले कि गिरीराज पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं। भगवान विष्णु ने भी इसकी अनुमति दे दी। फिर माता पार्वती के पास जाकर नारद जी ने सूचना दी कि आपके पिता ने आपका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया है। यह सुनकर पार्वती बहुत निराश हुईं। उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध कर उसे किसी एकांत गुप्त स्थान पर ले जाने को कहा। उनके पिता गिरीराज की नजरों से बचाकर उनकी सखियां माता पार्वती को घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छोड़ आयीं। यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिये कठोर तप शुरु किया। संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था, जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की। इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण किया। उनके कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए और माता पार्वती को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया। अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। उधर माता पार्वती के पिता अपनी भगवान विष्णु से पार्वती के विवाह का वचन दिये जाने के पश्चात पुत्री के अकस्मात घर छोड़ देने से व्याकुल थे। पार्वती को तलाशते-तलाशते वे उस स्थान तक आ पंहुचे, इसके पश्चात माता पार्वती ने उन्हें अपने घर छोड़ देने का कारण बताया और भगवान शिव से विवाह करने के अपने संकल्प और शिव द्वारा मिले वरदान के बारे में बताया। तब पिता गिरीराज भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हुए भगवान शिव से अपनी पुत्री के विवाह को राजी हुए।
नारी प्रधान है यह व्रत
हरतालिका तीज का व्रत नारी प्रधान है। इस दिन महिलायें बिना कुछ खाये-पिये व्रत रखती हंै। यह व्रत संकल्प शक्ति का एक अनुपम उदाहरण है। संकल्प अर्थात किसी कर्म के लिये मन में निश्चित करना कर्म का मूल संकल्प है। इस प्रकार संकल्प हमारी आंतरिक शक्तियों का सामोहिक निश्चय है। अच्छे कर्मों का संकल्प सदा सुखद परिणाम देता है।
विधि-विधान से होगा पूजन
हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं। प्रदोष काल अर्थात दिन-रात के मिलने का समय। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती, गणेश एवं रिद्धि, सिद्धि जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से बनाई जाती हैं। विविध पुष्पों से सजाकर उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर चौकी रखी जाती हैं। चौकी पर एक अष्टदल बनाकर उस पर थाल रखते हैं। उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं। सभी प्रतिमाओं को केले के पत्ते पर रखा जाता हैं। सर्वप्रथम शुद्ध घी का दीपक जलाएं। तत्पश्चात सीधे (दाहिने) हाथ में अक्षत रोली बेलपत्र, मूंग, फूल और पानी लेकर उमा महेश्वर मंत्र का जाप करें। इसके बाद कलश के ऊपर नारियल रखकर लाल कलावा बाँध कर पूजन किया जाता हैं। कुमकुम, हल्दी, चावल, पुष्प चढ़ाकर विधिवत पूजन होता हैं। कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती हैं। फिर शिव जी की पूजा जी जाती हैं। तत्पश्चात माता गौरी की पूजा की जाती हैं। उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं। इसके पश्चात अन्य देवताओं का आह्वान कर षोडशोपचार पूजन किया जाता है। तदुपरांत हरतालिका व्रत की कथा पढ़ी जाती हैं। इसके उपरांत आरती की जाती हैं, जिसमें सर्वप्रथम गणेश जी की, शिव जी की फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं। इस दिन महिलाएं रात्रि जागरण भी करती हैं और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं। प्रत्येक पहर में भगवान शिव को सभी प्रकार की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण किया जाता है। आरती और स्तोत्र द्वारा आराधना की जाती है। हरतालिका व्रत का नियम हैं कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता। प्रात: अन्तिम पूजा के बाद ऊँ उमायै नम: मंत्र का जाप करते हुए माता गौरी को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं, उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं। ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता हैं। उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोड़ा जाता हैं। अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता हैं।