24 को होलिका दहन, 25 को उड़ेगा गुलाल

मार्च माह की 24 तारीख को जगह-जगह होलिका दहन होगा, फिर धुरेड़ी के दिन यानि 25 मार्च को लोग उल्लास के साथ रंगों में डूब जायेंगे। होली के त्यौहार के लिए बाजार सज कर तैयार हो गया है। रंग बिरंगी पिचकारियां आकर्षित करने लगी हैं।

24 को होलिका दहन, 25 को उड़ेगा गुलाल

रीवा। देश-प्रदेश सहित जिले में यह त्योहार हर्ष और उमंग के साथ मनाया जाता है। इस बार भी होली के लिए जिलेभर में तैयारियां शुरू हो गई हैं। मुख्यत: गुड़हाई बाजार, शिल्पी प्लाजा व आंचलिक बाजारों में होली के त्योहार को देखते हुए आवश्यक वस्तुओं की आवक बढ़ गई है। हालांकि इस तैयारी में बढ़ी हुई महंगाई लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रही है। फिर भी लोग होलिका दहन के लिए आवश्यक तैयारी कर रहे हैं। होलिका दहन का स्थान चिन्हित करने के साथ ही त्योहार को उत्साहपूर्वक मनाने की योजना गली-मोहल्लों व गांवों में बनने लगी है। रंग, अबीर के साथ फाग उत्सव की रूपरेखा भी लोगों ने बना ली है। मान्यता है कि फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका को गोबर के कंडों, सेमल के पेड़ व सूखी लकडिय़ों से सजाना चाहिए। आयुर्वेद कहता है कि होलिका तापने से शरीर को ऊष्मा प्राप्त होती है, जो ऋतुओं के संधि काल में होने वाली बीमारियों से शरीर को बचाती है। होलिका तापने के लिए खुले मैदान में बैठना चाहिए। इस दौरान शरीर पर पडऩे वाली चांद की रोशनी फायदेमंद होती है और चांद को निहारने से आंखों को ठंडक पहुंचती है।
होलिका दहन से पहले लगायें हल्दी का टीका
पौराणिक मान्यता कहती है कि होली से 8 दिन पहले अर्थात् फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से प्रकृति में नकरात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है। इस कारण इन 8 दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। माना जाता है कि होलिका दहन से पहले होलिका पर हल्दी का टीका लगाना चाहिए। फिर होलिका के चारों ओर अबीर, गुलाल से रंगोली बनाएं और पांच फल, अन्न और मिठाई चढ़ाएं। होलिका के चारों ओर 7 बार परिक्रमा करके जल अर्पित करें, इससे घर में सुख-समृद्धि आती है। होलिका दहन के उपरांत बची होली की राख को भी बहुत पवित्र माना जाता है। परम्परा के अनुसार होली में गेहूं की नई बाली और हरे गन्ने को भूनना बहुत ही शुभ है। कई जगह होली में भूनी गेहूं की बाली को बाटने की भी परम्परा है।
भद्राकाल को छोड़कर करें होलिका दहन
होलिका दहन के दिन हर साल भद्रा लगता है और इस वजह से होलिका दहन की स्थिति भी बन जाती है। दरअसल भद्रा को विघ्नकारक माना जाता है। इस समय होलिका दहन करने से हानि और अशुभ फलों की प्राप्ति होती। इसलिए भद्रा काल को छोड़कर ही होलिका दहन किया जाता है। विशेष परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। इस वर्ष भद्रा रात के दूसरे पहर में समाप्त हो रहा है, जिससे दोषरहित काल में होलिका दहन किया जा सकेगा।