सिकल सेल से पीडि़त मरीज भारत में सर्वाधिक, विश्व में भारत दूसरा ऐसा देश जहां सर्वाधिक मरीज

सिकल सेल से पीडि़त मरीजों की संख्या भारत में सर्वाधिक है। विश्व में इस बीमारी से ग्रसित मरीजों के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। सिकल सेल बीमारी की यदि पहचान सही समय में या बाल्यावस्था में ही हो जाए तो इलाज आसान हो जाता है।

सिकल सेल से पीडि़त मरीज भारत में सर्वाधिक, विश्व में भारत दूसरा ऐसा देश जहां सर्वाधिक मरीज

REWA.उक्त बातें डॉ तापस चकमा वैज्ञानिक राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान आईसीएमआर जबलपुर ने कही। वह श्याम शाह मेडिकल कॉलेज में आयोजित मल्टी डिसीप्नीनरी रिसर्च यूनिट में रिसेंट अपडेट्स ऑन सिकल सेल डिजीज पर एक दिवसीय कान्फ्रेेंस के दौरान कही। यह कान्फ्रेंस एमपीसीएसटी भोपाल से प्रायोजित किया गया था। मप्र मेडिकल काउंसिल से दो क्रेडिट ऑवर का एक्रोडिटेशन प्राप्त था। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ ज्योति सिंह, पूर्व विभागाध्यक्ष पीडियाट्रिक विभाग मेडिकल कॉलेज रहीं। कान्फ्रेंस में आर्गनाइजेशन कमेटी के चयेरमैन डॉ मनोज इंदूलकर, मेम्बर सेक्रेटरी डॉ राहुल मिश्रा अधीक्षक संजय गांधी अस्पताल, डॉ शंखपाणि महापात्रा, आर्गनाइजर मेम्बर डॉ संजय कुमार पाण्डेय मौजूद रहे। कार्यक्रम में मप्र मेडिकल काउंसिल द्वारा नियुक्त किए गए आब्जर्वर डॉ मनीष सुल्या, गांधी चिकित्सा महाविद्यालय भोपाल मौजूद रहे। जिन्होंने कार्यक्रम का बिंदुवार निरीक्षण किया। कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन डॉ राहुल मिश्रा नोडल अधिकारी एमडीआरयू ने दिया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता डॉ तापस चकमा वैज्ञानिक राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान आईसीएमआर जबलपुर रहे। उन्होंने बताया कि सिकल सेल डिजीज के वर्डन में भारत दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है। भारत के जनजातीय क्षेत्र के लोग इस बीमारी से अधिक ग्रसित हैं। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि यह बीमारी आनुवांशिक है तथा प्रभावित मरीज की पहचान यदि बाल्यावस्था में ही हो जाए तो इसका उपचार करने में सुविधा हो सकती है। इस बीमारी से होने वाली क्षति को कुछ स्तर तक कम किया जा सकता है। इसके लिए इस बीमारी की जानकारी को स्कूली बच्चों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। सिकल सेल बीमारी के प्रति लोगों में जागरुकता होनी चाहिए।


डॉ मनोज इंदूलकर डीन मेडिकल कॉलेज रीवा ने सिकल सेल बीमारी के माल्यूकुलर स्तर की जानकारी विस्तार से दी। उन्होंने बताया कि सिकल सेल बीमारी से आयरन एसीमिलेटर जीन की भूमिका एवं उनका प्रभाव क्या होता है। डॉ लोकेश त्रिपाठी एसोसिएट प्रोफेसर पैथालॉजी ने सामान्य से लेकर आधुनिक तकनीकियों की संवेदनशीलता एवं विशेषता के बारे में विस्तृत जानकारी दी। डॉ गौरव त्रिपाठी ने सिकल सेल बीमारी में हाइड्रोक्सी यूरिया के महत्व को बताया। उन्होंने बताया कि इस दवा से मरीज को एक स्थाई अवस्था में संतुलित किया जा सकता है।

बीमारी के उपचार और मैनेजमेंट की भी जानकारी डॉ गौरव त्रिपाठी ने दी। सभसी वक्ताओं ने सिकल सेल बीमारी पर गंभीर समस्या, निदान एवं बीमारियों पर वर्तमान में हो रहे शोध तथा मैनेजमेंट संबंधी टॉपिक पर विचार प्रकट किए। विंध्य रीजन में सिकल सेल संबंधी विषय पर मल्टीडिसीप्लीनरी रिसर्च यूनिट द्वारा किए गए रिसर्च पर डॉ शंखपाणि महापात्रा ने जानकारी दी। कान्फ्रेंस में मुख्य अतिथि डॉ ज्योति सिंह ने उपस्थित सभी छात्रों, फैकल्टी एवं डॉक्टर्स को बीमारियों के प्रति जागरुकता एवं आए दिन हो रहे नए अनुसंधानों की उपयोगिता से अवगत कराया। कान्फ्रेंस में 120 लोगों ने हिस्सा लिया।

9 लोगों ने पोस्टर प्रेजेंटेशन दिया। पोस्टर प्रेजेंटेशन के जज मेडिकल कॉलेज के डॉ पीके लखटकिया विधाभागध्यक्ष हड्डी रोग विभाग, डॉ नरेश बजाज विभागाध्यक्ष शिशु रोग विभाग, डॉ आदेश पाटीदार विभागाध्यक्ष फामैकोलॉजी विभाग रहे। पोस्टर प्रेजेंटेशन में प्रथम पुरस्कार रिसर्च स्कालर श्रीमती श्वेता पाण्डेय, द्वितीय पुरस्कार डॉ मृदुला जैन, तृतीय पुरस्कार डॉ प्रियदर्शनी को प्राप्त हुआ। कार्यक्रम का संचालन रिसर्च स्कॉलर सपनिता सिंदे ने किया।