जानिए चंद्रयान 3 को चांद तक पहुंचने में कितने दिन दिन लग जाएंगे और कितनी तय करेगा दूरी
चंदा मामा अब दूर के नहीं रहेंगे। भारत ने शुक्रवार को इतिहास रचने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। श्रीहरिकोटा से चन्द्रयान 3 लांच किया गया है। चन्द्रयान चांद की 3.38 लाख किमी की लंबी दूरी नापने निकल पड़ा है। 2.35 बजे चन्द्रयान 3 को छोड़ा गया है। इसे चन्द्रमा तक पहुंचने में करीब 42 दिन लगेंगे। एलवीएम-3 रॉकेट ने इसे 179 किलोमीटर की ऊंचाई पर छोड़ दिया गया है। अब आगे की यात्रा चंद्रयान-3 खुद करेगा।
श्रीहरिकोटा। 23-24 अगस्त के बीच किसी भी समय यह चंद्रमा के दक्षिणी धु्रव पर मैंजिनस-यू क्रेटर के पास उतरेगा। चंद्रयान-3 को एलवीएम 3-एम4 रॉकेट 179 किलोमीटर ऊपर तक ले गया। उसके बाद उसने चंद्रयान-3 को आगे की यात्रा के लिए अंतरिक्ष में धकेल दिया। इस काम में रॉकेट को मात्र 16.15 मिनट लगे। इस बार चंद्रयान-3 को एलवीएम 3 रॉकेट ने जिस ऑर्बिट में छोड़ा है वह 170 बाय 36,500 किलोमीटर वाली अंडाकार जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट है। पिछली बार चंद्रयान-2 के समय 45,575 किलोमीटर की कक्षा में भेजा गया था। इस बार यह कक्षा इसलिए चुनी गई है ताकि चंद्रयान-3 को ज्यादा स्थिरता प्रदान की जा सके।
धरती और चंद्रमा के 5-5 चक्कर लगाएगा
इसरो के एक वैज्ञानिक ने नाम ने छापने की शर्त पर बताया कि 170 बाय 36,500 किलोमीटर वाली अंडाकार जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट के जरिए चंद्रयान की ट्रैकिंग और ऑपरेशन ज्यादा आसान और सहज होगा। चंद्रमा की ओर भेजने से पहले चंद्रयान-3 को धरती के चारों तरफ कम से कम पांच चक्कर लगाने होंगे। हर चक्कर पहले वाले चक्कर से ज्यादा बड़ा होगा. ऐसा इंजन को ऑन करके किया जाएगा।
5 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा पहुंचेगा
चंद्रयान-3 ट्रांस लूनर इंसरशन कमांड दिए जाएंगे। फिर चंद्रयान-3 सोलर ऑर्बिट यानी लंबे हाइवे पर यात्रा करेगा. 31 जुलाई तक ञ्जरुढ्ढ को पूरा कर लिया जाएगा. इसके बाद चंद्रमा करीब साढ़े पांच दिनों तक चंद्रमा की ओर यात्रा करेगा. चंद्रमा की बाहरी कक्षा में वह पांच अगस्त के आसपास प्रवेश करेगा. यह गणनाएं तभी सही रहेंगी, जब सबकुछ सामान्य स्थिति में होगा. कोई तकनीकी गड़बड़ी होने पर इसमें समय बढ़ सकता है.
इस दिन लैंडिंग होगी शुरू
चंद्रयान-3 चंद्रमा की 100 बाय 100 किलोमीटर की कक्षा में जाएगा। इसके बाद विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग हो जाएंगे। उन्हें 100 किलोमीटर बाय 30 किलोमीटर की अंडाकार कक्षा में लाया जाएगा। 23 अगस्त को डीबूस्ट यानी गति धीमी करने का कमांड दिया जाएगा। इसके बाद चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर उतरना शुरू करेगा। इस बार विक्रम लैंडर में के चारों पैरों की ताकत को बढ़ाया गया है। नए सेंसर्स लगाए गए हैं। नया सोलर पैनल लगाया गया है। पिछली बार चंद्रयान-2 की लैंडिंग साइट का क्षेत्रफल 500 मीटर बाय 500 मीटर चुना गया था। इसरो विक्रम लैंडर को मध्य में उतारना चाहता था। जिसकी वजह से कुछ सीमाएं थीं। इस बार लैंडिंग का क्षेत्रफल 4 किलोमीटर & 2.5 किलोमीटर रखा गया है। यानी इतने बड़े इलाके में चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर उतर सकता है।
खुद लैंडिंग की जगह चुनेगा
लैंडिंग के लिए सही जगह का चुनाव वह खुद करेगा। इस बार कोशिश रहेगी कि विक्रम लैंडर इतने बड़े इलाके में अपने आप सफलतापूर्वक उतर जाए। इससे उसे ज्यादा फ्लेक्सिबिलिटी मिलती है. इस लैंडिग पर नजर रखने के लिए चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर अपने कैमरे तैनात रखेगा। साथ ही उसने ही इस बार की लैंडिंग साइट खोजने में मदद की है।
विक्रम लैंडर 96 मिलिसेकेंड्स में सुधारेगा गलतियां
विक्रम लैंडर के इंजन पिछली बार से ज्यादा ताकतवर हैं। पिछली बार जो गलतियां हुईं थी, उसमें सबसे बड़ी वजहों में से एक था कैमरा, जो आखिरी चरण में एक्टिव हुआ था। इसलिए इस बार उसे भी सुधारा गया है। इस दौरान विक्रम लैंडर के सेंसर्स गलतियां कम से कम करेंगे। उन्हें तत्काल सुधारेंगे। इन गलतियों को सुधारने के लिए विक्रम के पास 96 मिलीसेकेंड का समय होगा।