कजलियां घर में उन्नति लेकर आती है, जैसे जैसे बढ़ती है कजलियां वैसे वैसे बढ़ती है समृद्धि

मंगवार को रक्षाबंधन के दूसरे दिन कजलियां का पर्व मनाया गया। लोगों ने एक दूसरे को कजलियां देकर सुख समृद्धि की कामना की। नदी में पहुंच कर कजलियां का विसर्जन भी किया। लोगों की मान्यता है कि घर में कजलियां लगाने पर यदि वह तेजी से बढ़ती है तो घर में समृद्धि और खुशहाली आती है।

भोलेनाथ को अर्पित किया गय, बाबाघाट, लक्ष्मणबाग, झिरिया में मनाया गया कजलियां का पर्व
रीवा। कजलियां पर्व जिलेभर में उत्साह के साथ मनाया गया। नगर में बाबा घाट व अन्य जगहों पर महिलाओं की भीड़ रही, जिन्होंने जवा की बोई गई कजलियों को घाट में विसॢजत कर भोलेनाथ को अॢपत किया। इसके बाद आपस में एक-दूसरे को कजलियां बांटकर मंगलकामना की। नगर में बाबा घाट, लक्ष्मणबाग, झिरिया व गोविंदगढ़ किला में लोग कजलियां मनाने एकत्रित हुए, जिनके द्वारा कजलियां भेंट कर एक-दूसरे के लिए मंगलकामना की गई। माना जाता है कि प्रेेम व भाईचारा निभाने कजलियों का विशेष महत्व है। ज्ञात हो कि कजलियां मुख्य रूप से बुंदेलखंड में रक्षाबंधन के दूसरे दिन की जाने वाली एक परंपरा है। जिसमें नागपंचमी के दूसरे दिन खेतों से लाई गई मिट्टी को बर्तनों में भरकर उसमें गेहूं और जौ बो दिये जाते हैं और उन गेहूं के बीजों में रक्षाबंंधन के दिन तक गोबर की खाद और पानी दिया जाता है तथा देखभाल की जाती है। जब ये जौ व गेहंू के छोटे-छोटे पौधे उग आते हैं, तो इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि इस बार फसल कैसी होगी। गेहूं के इन छोटे-छोटे पौधों को कजलियां कहते हैं। कजलियां वाले दिन घर की लड़कियां कजलियां के कोमल पत्ते तोड़कर घर के पुरुषों के कानों के ऊपर लगाती हैं, जिस पर पुरुषों द्वारा शगुन के तौर पर लड़कियों को रुपये भी दिये जाते हैं। इस पर्व में कजलियां लगाकर लोग एक-दूसरे को शुभकामनायें देकर यह कामना करते हैं कि सब लोग कजलियां की तरह खुश और धन धान्य से भरपूर रहें। इसीलिए यह पर्व सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।