मिशन जटायु: प्रतिबंधित दवाइयां ले रहीं गिद्धों की जान, इन्हें बचाने मैदान में उतरा रीवा वन विभाग
गिद्धों की जान बचाने के लिए वन विभाग अब मैदान पर उतर आया है। जटायु संरक्षण अभियान चलाया जा रहा है। प्रतिबंधित दवाइयां गिद्धों की जान ले रही हैं। इन दवाइयां पर रोक लगाने के लिए वन विभाग का अमला दवा दुकानों, अस्पतालों पर पहुंचकर उनके उपयोग से दूरी बनाने की सलाह दे रहा है।
रीवा वन विभाग ने शुरू किया जटायु संरक्षण अभियान, दवा दुकानों तक पहुंचा वन अमला
प्रतिबंधित दवाइयों का उपयोग और बिक्री न करने की दी गई सलाह
रीवा।ज्ञात हो कि कुछ दशक पहले तक यदि गांव या आसपास में कोई जानवर मृत होता था, तो उसके आसपास गिद्ध मंडराने लगते थे। गिद्धों की भीड़ लग जाती थी, लेकिन अब वह विलुप्तप्राय होने लगे। गिद्ध नजर नहीं आते हैं। इन गिद्धों के विलुप्त होने की वजह इंसान ही बना है। कुछ ऐसी प्रतिबंधित दवाइयां का उपयोग इंसानों ने शुरू कर दिया, जिसे खाने से गिद्धों की मौत होने लगी। भारत सरकार ने हालांकि इन दवाइयां पर प्रतिबंध लगा दिया है फिर भी पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया है। चोरी छुपे अब भी इनका उपयोग हो रहा है। यही वजह है कि वन विभाग ने इन घातक दवाइयों के उपयोग पर रोक लगाने के लिए डीएफओ रीवा अनुपम शर्मा ने जटायु अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान में वन मंडल अंतर्गत आने वाले सभी रेंज अफसर और कर्मचारियों को अभियान से जोड़ा गया है। वन विभाग की टीम अस्पताल, गांव और दवा दुकानों पर पहुंचकर लोगों को इन प्रतिबंधित दवाइयां के उपयोग से दूरी बनाने की सलाह दी जा रही है। इन प्रतिबंधित दवाइयां की जगह पर विकल्प भी बताया जा रहे हैं वन विभाग का यह अभियान काफी सराहनीय है रीवा में कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां गिद्धों की संख्या बढ़ रही है यदि वन विभाग का यह प्रयास सफल रहा तो आने वाले दिनों में यह दोबारा से हमें नजर आने लगेंगे।
यह पड़ा प्रतिबंधित दवा के उपयोग का बुरा असर
गिद्ध (Vulture) मुर्दाखोर पक्षी होते हैं, जो सड़े गले मांस को खाते हैं। जिसमें असंख्य घातक जीवाणु होते हैं। इस तरह गिद्ध प्रकृति के सफ़ाईकर्मी होते हैं। ये जहाँ मौजूद होते हैं, वहाँ के पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) को स्वच्छ व स्वस्थ करते हैं।परंतु बीते कुछ दशकों में गिद्धों की संख्या काफी हद तक कम हुई है। इसके प्रमुख कारणों में से एक *Diclofenac* (डाइक्लोफेनेक) दवा का मवेशी के उपचार हेतु उपयोग है। उपचारित बीमार मवेशी के मरने के बाद, जब गिद्ध उसके मांस को खाते हैं, तो यह दवा गिद्ध के गुर्दों को खराब कर देती है, जिससे कुछ ही दिनों में गिद्ध की मृत्यु हो जाती है। भारत सरकार ने वर्ष 2008 में डाइक्लोफेनेक का जानवरों/मवेशी के उपचार हेतु उपयोग प्रतिबंधित एवं किया था। इसी वर्ष *Aceclofenac* एवं *Ketoprofen* जैसी हानिकारक दवाओं का भी जानवरों/मवेशी के उपचार के लिए उपयोग प्रतिबंधित किया गया है। इनके अलावा, Nimesulide प्रतिबंधित तो नहीं है, पर गिद्धों के लिए हानिकारक है। परंतु अज्ञानतावश कई लोग अभी भी इन दवाओं का उपयोग कर रहे हैं।इन हानिकारक दवाओं के बारे में संबंधितों को जागरूक करने के लिए रीवा वन विभाग ने जटायु संरक्षण अभियान की शुरुवात की है।
अभियान में यह किया जा रहा
इसके अंतर्गत वनकर्मी Medical Stores (दवा की दुकानों), गौशाला, पशु चिकित्सालय एवं गावों में जा कर Chemists (दवा-विक्रेताओं), गौशाला प्रबंधकों, पशु चिकित्सकों, एवं ग्रामीण गौ स्वामियों, गौसेवकों को जागरूक कर रहे हैं। और हानिकारक दवाओं के स्थान पर इनके स्थान पर *Meloxicam* अथवा *Tolfenamic acid* जैसी सुरक्षित दवाओं के उपयोग की सलाह दें रहे हैं।अगर लगातार समझाइश के बाद भी प्रतिबंधित दवाओं की बिक्री अथवा उपयोग किया जाता है, तो वन विभाग द्वारा *Drugs & Cosmetics Act 1940* एवं *Wildlife Conservation Act 1972* (वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972) अंतर्गत कार्यवाही की जा सकती है।
गिद्धों पर दूरबीन से रखी जा रही नजर
इसके अतिरिक्त, वनकर्मियों द्वारा सतत रूप से Binoculars (दूरबीन) द्वारा गिद्दों और उनके घोसलों की निगरानी की जा रही है।अभी तक इस ओर सिरमौर वन परिक्षेत्र में सबसे अधिक सजगता से कार्य किया गया है। इनमें शुभम दुबे, वन परिक्षेत्र अधिकारी, प्रमोद द्विवेदी कार्यवाहक उपवनक्षेत्रपाल, रामयश रावत कार्यवाहक वनपाल, राजेंद्र साकेत कार्यवाहक वनपाल, रामसुजान मिश्र वनपाल, दीप कुमार सिंह वनरक्षक, सुखलाल साकेत वनरक्षक, अनुराग मिश्रा वनरक्षक, विनीत सिंह वनरक्षक, पुष्पराज सिंह वनरक्षक, दीपक गुप्ता वनरक्षक शामिल हैं।वन परिक्षेत्र सिरमौर अंतर्गत पिछले सप्ताह क्योटी प्रपात एवं चचाई प्रपात में राजेंद्र साकेत, परिक्षेत्र सहायक लालगाँव एवं रमेश गौतम बीटगार्ड चचाई द्वारा वल्चर साइटिंग बायनोक्यूलर के माध्यम से की जा रही है।