नए सोध ने चौंकाया, हीटवेव से हर सा 1.53 लाख लोग मर रहे इसमें भारतीय सबसे ज्यादा
मोनाश विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया के नेतृत्व में किए गए अध्ययन ने चौकाने वाले खुलासे किए हैं। पिछले 30 साल में विश्व भर में हुई हीटवेव से मौत के आंकड़ों को जुटाया गया तो इसमें करने वाले सबसे ज्यादा भारत के मिले हैं। हर साल हीटवेव से मरने वालों की संख्या करीब 1.53 लाख बताई गई है। इसमें भारत सबसे ऊपर है। मौतों में पांचवा भाग इनका है।
नई दिल्ली। गर्मी और लू का प्रकोप पूरे देश को परेशान कर रहा है। बढ़ते तापमान और हीटवेव की वजह से जनजीवन अस्त-व्यस्त हैं। इसी बीच बीते तीस सालों के दौरान हीटवेव से हुई मौतों के आकड़ों से जुड़ी एक रिपोर्ट सामने आई है। 1990 के बाद से 30 वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालने वाले इस नए शोध ने कुछ चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, बीते 30 सालों में दुनिया भर में प्रति वर्ष 1.53 लाख से अधिक मौतें हीटवेव से हुई हैं। इनमें मौतों में से सबसे बड़ा हिस्सा भारत से सामने आया है, जो कि कुल मौतों का पांचवां भाग है। यानी हीटवेव से मरने वाला हर पांचवां व्यक्ति भारत का है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के बाद चीन और रूस का नंबर आता है। चीन में लगभग 14 प्रतिशत और रूस में लगभग 8 प्रतिशत हीटवेव से जुड़ी मौतें हुई हैं। मोनाश विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में पाया गया कि हीटवेव से जुड़ी मौतें गर्मी से संबंधित अन्य सभी मौतों का लगभग एक तिहाई हैं। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि गर्मियों में होने वाली कुल 1.53 लाख मौतों में लगभग आधी एशिया और 30 प्रतिशत से अधिक यूरोप में होती हैं। इसके अलावा, सबसे बड़ी अनुमानित मृत्यु दर (प्रति हजार जनसंख्या पर मृत्यु) शुष्क जलवायु और निम्न-मध्यम आय वाले क्षेत्रों में देखी गई। यह रिपोर्ट पीएलओएस मेडिसिन में प्रकाशित हुई है।
रिपोर्ट में इस बात का हुआ खुलासा
इस रिपोर्ट में लिखा गया है कि 1990 से 2019 तक के गर्म मौसम के दौरान हीटवेव से 1.53 लाख मौतें हुईं। इस तरह प्रति दस लाख नागरिकों पर कुल 236 मौतें दर्ज की गईं। इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने ब्रिटेन स्थित मल्टी-कंट्री मल्टी-सिटी (एमसीसी) सहयोगात्मक अनुसंधान नेटवर्क के डेटा का उपयोग किया, जिसमें 43 देशों के 750 स्थानों की दैनिक मौतें और तापमान शामिल थे। 2019 तक के दशक की तुलना 1999 तक के दशक से करने पर, दुनिया भर में हर साल गर्मी की अवधि औसतन 13.4 से 13.7 दिनों तक बढ़ी हुई पाई गई। इसमें हर दशक में औसत तापमान भी 0.35 डिग्री सेल्सियस बढ़ा पाया गया।
2023 2 हजार सालों में सबसे गर्म रहा
दूसरी ओर, नेचर जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक 2023 पिछले 2 हजार साल में सबसे गर्म रहने वाला वर्ष था। वैज्ञानिक बढ़ती गर्मी के लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार मान रहे हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बढ़ते तापमान पर लगाम लगाने के लिए समय पर इंतजाम नहीं किए गए तो 2050 तक करोड़ों बुजुर्गों और कमजोर लोगों का जीवन मुश्किल में पड़ सकता है। जर्नल में विभिन्न देशों की सरकारों से ग्लोबल वार्मिंग को गंभीरता से लेने की अपील की गई है।