रीवा वन विभाग ने कर दिया ऐसा काम कि देश में बज गया डंका, अब तक कहीं नहीं हुई थी ऐसी शुरुआत
वन विभाग ने एक नए प्रयोग ने देश में डंका बजा दिया है। अब तक देश में ऐसा प्रयोग नहीं किया गया जो रीवा में हो रहा है। इस प्रयोग से पौधों के सूखने और नष्ट होने की संभावना कम हो जाएगी। पौधरोपण के बाद रिजल्ट बेहतर मिलेंगे। जमीन की नमीं का स्तर नापने के लिए पौधरोपण स्थलों पर स्मार्ट प्लांटेशन मॉनीटरिंग सिस्टम लगाया गया है। यही रीवा के लिए बढ़ी उपलब्धि है।
पौधरोपण क्षेत्रों में स्मार्ट प्लांटेशन मॉनीटरिंग सेंसर की स्थापना की गई
पौधारोपण क्षेत्रों में नमी के स्तर की निगरानी करेगा स्मार्ट सेंटर
रीवा। ज्ञात हो कि वन विभाग प्रतिवर्ष कई स्थानों पर पौधे रोपित करता है। पर वन विभाग के कार्य में सबसे बड़ी चुनौती पौधों को जीवित रखने में आती है। पौधों की जीवितता उचित मात्रा एवं समय पर पानी से सिंचाई पर भी निर्भर करता है। अत्यधिक पानी, अत्यधिक सुखा, अथवा अधिक विलंब पर पानी, ये सभी पौधों के लिए नुकसानदायक होते हैं। प्रतिदिन यह देखते रहना काफी कठिन होता है। इस चुनौती के निराकरण हेतु रीवा वन विभाग ने स्मार्ट सेंसर के उपयोग से पौधारोपण क्षेत्रों में नमी के स्तर की निगरानी शुरू कर दी है। ऐसा करने से रीवा पूरे देश में पहला वनमण्डल बन गया है।
इन जगहों पर शुरू हुआ प्रयोग
प्रारंभिक तौर पर रोपण क्षेत्रों में मिट्टी की नमी की रियल टाइम मॉनिटरिंग होगी। अगर प्रयोग सफल सफल रहा तो अन्य तरह के सेंसर (जैसे पीएच, उर्वरकता, इत्यादि) भी लगाए जायेंगे। वर्तमान में यह सिस्टम बसामन मामा गौवंश विहार में रीवा वन विभाग द्वारा किए गए ब्लॉक पौधारोपण में, एवं रीवा इंजीनियरिंग कॉलेज परिसर के नगर वन में स्थापित किया गया है।
इन अधिकारियों की मौजूदगी में लगाया गया सेंसर
बसामन मामा गौशाला ब्लाक पौधारोपण में स्मार्ट मॉनीटरिंग सिस्टम स्थापित कराते समय डीएफओ अनुपम शर्मा, एसडीओ पूजा नागले, रेंजर संजय सिंह परिहार, परिक्षेत्र सहायक छोटेलाल सिंह माष्ैजूद रहे। इसी तरह इनकी मौजूदगी में इंजीनियरिंग कॉलेज परिसर के नगर वन में भी सिस्टम स्थापित कराया गया।
इस तरह काम करेगा स्मार्ट मॉनीटरिंग सिस्टम
- पूरा सिस्टम सौर ऊर्जा से संचालित रहता है। इसके संचालन के लिए बिजली की आवश्यकता नहीं होती।
- सेंसर्स को सैंपल पौधों की जड़ों के पास मिट्टी में स्थापित किया जाता है।
- ये सेंसर्स मिट्टी की नमी की स्थिति डाटा लॉगर में भेजते हैं।
- डाटा लॉगर से नमी की मात्रा की जानकारी इंटरनेट क्लाउड पर जाती है।
- हर घंटे का डाटा रिकॉर्ड होता रहता है।
- इस डाटा को अधिकारी कहीं पर भी, किसी भी समय देख सकते हैं, और आवश्यकता प्रतीत होने पर वन अमले को पौधों की सिंचाई हेतु निर्देशित कर सकते हैं।