रॉकी की मौत का मामला: 8 साल बाद मामले में फंसे 8 पुलिकर्मियों को राहत की आस, सीआईडी ने प्रस्तुत की खात्मा रिपोर्ट
रीवा का बहुचर्चित रॉकी की मौत के मामले में सीआईडी ने गुरुवार को सीजेएम कोर्ट में खात्मा रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। मामले में फंसे 8 पुलिस कर्मियों की चार्ज सीट प्रस्तुत करने के लिए शासन से अनुमति नहीं मिली थी। इसके बाद सीबीआई ने मामले में खात्मा रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है।
रीवा। सीआईडी डीएसपी असलम खान ने पूरे मामले पर प्रकाश डालते हुए बताया कि एक महिला सुलताना मंसूरी पति के द्वारा तलाक दे दिया गया था। छोटे छोटे बच्चों के साथ वह अपने पति के मकान में ही रहती थी। पति के खिलाफ प्रकरण चला रखा था। पति चाहता था कि महिला यहां से किसी तरह भाग जाए और मकान में कब्जा हो जाए। उसने मकान को दो लोगों को बेचा था। अतीक उर्फ रॉकी पिता रफीक रिवानी की पत्नी सूफिया के नाम और रंजना के नाम से मकान की रजिस्ट्री हुई थी। मकान पर कब्जे को लेकर अतीक साथियेां के साथ 13 फरवरी 2016 को साथियों के साथ उसके घर पहुंचा था। घर से सामान फेंक दिया था। तत्कालीन टीआई शैलेन्द्र भार्गव शिकायत मिलने पर मौके पर पहुंचे थे। उसी समय आरोपियों के साथ बल प्रयोग किया गया था। यह बल प्रयोग का वीडियो वायरल हो गया था। वीडियो वायरल होने के बाद लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी। अतीक पूर्व पार्षद था। तत्कालीन समय में पत्नी पार्षद थी। जब अतीक को सिटी कोतवाली ले जाया गया तो कई लोग एकत्र हो गये। थाना में अतीक ने खुद को रोगी बताया। थाना में भी उसे दवाइयां दी गई। इसके बाद जिला अस्पताल ले जाया गया। वहां से मेडिकल कॉलेज ले जाया गया। ट्रीटमेंट सीने में दर्द का होता रहा। अंतत: रात 10 बजे उसका निधन हो गया। इसके बाद अस्पताल में तोडफ़ोड़ हुई। तीन डॉक्टरों की टीम ने दूसरे दिन पोस्टमार्टम किया गया। पोस्ट मार्टम के बाद छोटी दरगाह के पास शव रखकर चकाजाम किया गया। पुलिस अधिकारियों पर 302 का मामला दर्ज कराने की मांग की गई। इसकी शिकायत भी की गई। शिकायत में लिखा गया कि अतीक अहमद को थाना में ही मार डाला गया। जबकि सीसीटीवी में वह अस्पताल जाते हुए दिखा। एमएलसी हुई। जांच में सामने आया कि जो इलाज हुआ वह मारपीट का नहीं हुआ। हार्ट का इलाज हुआ। डॉक्टरों ने भी रिपोर्ट में मारपीट के इलाज का जिक्र नहीं किया। इस घटना के बाद ज्यूडिशियन इन्कवायरी का आदेश 14 फरवरी को हुआ। धारा 302 के तहत पुलिस अधिकारियेंा के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया। 8 पुलिसकर्मियों को आरोपी बनाया गया। इसमें तत्काली थाना प्रभारी सहित अन्य शामिल थे। इसकी विवेचना कुछ दिनों बाद सीआईडी को ट्रांसफर हुआ। ज्यूडिशियल की जांच भी चल रही थी। ज्यूडिशियन का क्षेत्राधिकार अलग चल रहा था। सीजेएम जांच कर रहे थे। सीआईडी विवेचना कर रही थी। तत्कालीन डीएसपी देवेन्द्र सिंह राठोर, केएस द्विवेदी तत्कालीन डीएसपी विवेचना कर रहे थे। इनके सेवा निवृत्त और सीआईडी से वापस होने के बाद वर्ष 2017 में यह विवेचना असलम खान को मिली। विवेचना में पाए गए साक्ष्यों के आधार पर प्रकरण 302 धारा हटाई गई। हत्या का कारण मारपीट नहीं मिला लेकिन मारपीट मृतक के साथ घटना स्थल पर हुई है। ऐसा विवेचना में सिद्ध किया गया। विवेचना में धारा 323, 294 का आरोप लगाया गया। उन पर चार्ज सीट संस्थित करने के लिए शासन से अनुमति मांगी गई थी। अनुमति देने से शासन ने इंकार कर दिया। शासन ने अतीक के साथ मारपीट को नाजायज नहीं माना। चूंकि पुलिसकर्मी शासकीय कर्मचारी, अधिकारी थे। कर्तव्य पालन के लिए मौके पर गए थे। रॉकी के खिलाफ 15 से 20 मामले पहले से ही रजिस्टर्ड थे। सिटी कोतवाली में सूची बद्ध है। यही वजह है कि अभियोजन स्वीकृति देने से शासन ने इंकार कर दिया। चार्ज सीट प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं मिली। डीएसपी ने बताया कि इसलिए आज खात्मा रिपोर्ट को सीजेएम कोर्ट में प्रस्तुत किया गया है। इसके पूर्व शिकायतकर्ता रफीक रिवानी को सूचना दी गई है। सीजेएम के पास खात्मा प्रस्तुत किया जा चुका है। भविष्य में जो भी आदेश होगा, उसका पालन किया जाएगा।
तत्कालीन थाना प्रभारी थे शैलेन्द्र भार्गव
मामला 13 फरवरी 2016 का है। सिटी कोतवाली थाना में उस समय थाना प्रभारी के रूप में शैलेन्द्र भार्गव पदस्थ थे। गुड़हाई बाजर का मामला था। एक महिला ने थाना पहुंच कर शिकायत दर्ज कराई थी कि रॉकी घर पहुंच कर उसका सामान घर से बाहर फेंक रहा था। शिकायत के बाद पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस के रोकने के बाद भी रॉकी नहीं माना। पुलिस ने रॉकी को पकड़ा और पिटाई करते हुए थाना ले गई थी। थाना में ही उसकी तबीयत बिगड़ गई थी। इसके बाद अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी।
यह बनाए गए थे आरोपी
रॉकी की मौत के मामले में तत्कालीन टीआई शैलेन्द्र भार्गव, श्याम नारायण सिंह उप निरीक्षक, रामेन्द्र शुक्ला उपनिरीक्षक, पीएन दाहिया सहायक उपनिरीक्षक, जय ङ्क्षसह आरक्षक, तनय तिवारी आरक्षक, महेन्द्र पाण्डेय प्रधान आरक्षक, जितेन्द्र सेन आरक्षक को आरोपी बनाया गया था।