रेडियोग्राफरों की सुरक्षा जीरो, जिंदगी दांव पर और जोखिम उठाने का भत्ता सिर्फ 50 रुपए मिल रहा
मरीजों की जांच करने वाले रेडियोग्राफर खुद की जान खतरे में डाल रहे हैं। इसके बदले उन्हें शासन से सिर्फ 50 रुपए रेडिएशन भत्ता मिल रहा। बेहतर डाइट के नाम पर भी शासन से किसी तरह की एलाउंस नहीं दिया जाता। हर समय रेडिएशन के खतरे में काम करने वाले रेडियोलॉजिस्ट गंभीर बीमारियों की चपेट में आने की दहलीज पर खड़े हैं। इनकी सुरक्षा और सेहत की तरफ न तो सरकार का ही ध्यान जा रहा है और न ही प्रबंधन ही ठोस कदम उठा रहा। इसके परिणाम आने वाले समय में दर्दनाक होंगे।
रेडिएशन की चपेट में आने का हर दिन मंडराता है खतरा
डाइट अलाउंस भी नहीं मिलता, कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं
रीवा। संजय गांधी अस्पताल, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में कई ऐसी मशीनें लगी हैं जो मरीजों की जांच कर उनकी बीमारियों का पता लगाती है। इन्हें रेडियोग्राफर आपरेट करते हैं। यह मशीनें मरीजों की जान बचाने में अहम भूमिका निभाती है लेकिन इसे आपरेट करने वालों को गंभीर बीमारियां भी परोसती है। इन मशीनों से निकलने वाला रेडिएशन इन रेडियोग्राफरों की सिर्फ सेहत ही खराब नहीं करती। कई पीडिय़ों को भी प्रभावित करती हैं। इन रेडियोग्राफर की सुरक्षा और सेहत की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता। कई मर्तबा संगठन ने आवाज उठाई लेकिन सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। रेडियोग्राफर हर समय खतरे में रहते हैं। रेडिएशन की चपेट में आने से यह धीरे धीरे मौत के करीब आगे बढ़ रहे हैं। इनके सुरक्षा को लेकर किसी तरह के कोई इंतजार नहीं हैं।
सिर्फ 50 रुपए मिलता है जोखिम भत्ता
खुद की जान जोखिम में डाल कर मरीजों की सेवा करने वाले रेडियोग्राफरों को सरकार की तरफ से सिर्फ 50 रुपए जोखिम भत्ता दिया जाता है। इस मामूली की राशि के बदले रेडियोग्राफर खुद की जान की परवाह किए बिना भी मरीजों की जांच करते हैं। यह जोखिम भत्ता करीब दो से तीन दशक पहले भी इतना ही था, जिसमें मामूली राशि भी नहीं बढ़ाई गई। इन्हें डाइट एलाउंस के नाम पर कुछ भी नहीं दिया जाता। ऐसे में रेडिएशन के प्रभाव को कम करने के लिए यह रेडियोग्राफर कैसे स्वस्थ्य डाइट ले सकेंगे, यह बड़ा सवाल है।
इन सारी मशीनों से रेडिएशन का खतरा
अस्पताल में कई ऐसी मशीनें हैं जिनसे रेडिएशन निकलता है। इसमें सिटी स्केन, एमआरआई, एक्सरे मशीन, मेमोग्राफी, कैथलैब मशीन शामिल हैं। सबसे अधिक खतरा कैथलैब में रहता है। यहां 24 घंटे मशीनें चलती है। एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी के दौरान खतरनाक रेडिएशन निकलता है।
दर्जनों कर्मचारी रेडिएशन के खतरे से जूझ रहे हैं
संजय गांधी अस्पताल में रेडियोलॉजी विभाग में करीब 12 रेडियोग्राफर हैं। इसी तरह सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में सीटी स्केन सहित एक्सरे में 6 रेडियोग्राफर काम कर रहे हैं। कैथलैब में भी कई कर्मचारी पदस्थ हैं। इसके अलावा आउटसोर्स कर्मचारी भी यहां तैनात किए गए हैं। यह सभी रेडिएशन की हर समय चपेट में रहते हैं। इनके लिए किसी तरह के सुरक्षा के इंतजाम नहीं रहते।
इन सारे खतरों की चपेट में आने की संभावना
रेडिएशन से कैंसर बांझपन और त्वचा संबंधी बीमारियों का खतरा हर समय मंडराता रहता है। रेडिएशन के कारण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जेनेटिक विकृति जाने का खतरा रहता है। इसके अलावा और भी कई गंभीर बीमारियों की चपेट में आने का खतरा मंडराता रहता है।
कहीं कुछ भी सुरक्षा के इंतजाम नहीं है
रेडिएशन क्षेत्र में काम करने वाले रेडियोग्राफरों के लिए किसी तरह के कोई सुरक्षा के इंतजाम नहीं है। लेड एप्रीन, लेड गॉगल, लेड थायराइड सीट, लेड गोनेड शीट, टीएलडी बैच भी सभी को उपलब्ध कराया जाना चाहिए लेकिन यह चीजें किसी भी रेडियोग्राफर के पास नहीं है। टीएलडी बैच किसी किसी कर्मचारी को दिया गया है। यह रेडिएशन मापक होता है, जो रेडिएशन बताता है।
डिप्टी सीएम से बंधी है रेडियोग्राफरों की आस
मप्र सरकार में चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मंत्रालय डिप्टी सीएम के पास हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में मप्र को नंबर वन बनाने की दिशा में कई बड़े कदम डिप्टी सीएम उठा रहे हैं। रीवा को भी मेडिकल हब बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। अस्पतालों में रिक्त डॉक्टरों के पद, टेक्नीशियन आदि के पदों को भरने की कवायद भी शुरू कर दिए हैं। ऐसे में रेडियोग्राफरों को डिप्टी सीएम से उम्मीद बंध गई है कि उनकी लंबे समय से चली आ रही मांगों पर भी जल्द ही निर्णय लिया जाएगा। बेसिक सैलरी का 25 फीसदी रेडिएशन अलाउंस और उचित मेस भत्ता भी जल्द ही उन्हें मिल जाएगा।