अजब फैसला: विवि में फिर बूढे करेंगे काम और जवान बूढ़े होने का करेंगे इंतजार
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय में रिटायर्ड हो चुके कर्मचारियों से फिर सेवाएं लेने की तैयारी हैं। वहीं नौकरी के इंतजार में राह ताक रहे युवाओं की उम्मीदवारों पर विवि ने पानी फेर दिया है। अब बूढ़े यहां फिर नौकरी करेंगे और युवा नौकरी के इंतजार में बूढ़े होने का इंतजार करेंगे। सब कुछ गड़बड़ चल रहा है। इस पर अंकुश लगाने वाला कोई नहीं है।
कार्यपरिषद की बैठक में लिया गया था निर्णय
अब अमल में लाने की तैयारी में जुटा विवि
रीवा। अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय सेवानिवृत्त कर्मचारियों को फिर से सेवा देने की तैयारी में है। 15 मार्च को विश्वविद्यालय में हुई कार्यपरिषद की बैठक में इस पर निर्णय लिया गया है। कार्यपरिषद के अध्यक्ष व कुलपति डॉ राजकुमार की अनुमति से उक्त बैठक में अन्य एजेंडा बिंदु प्रस्तुत हुए, जिसमें तीसरे क्रम पर सेवानिवृत्त अधिकारियों/कर्मचारियों को कार्य पर रखे जाने के संबंध में विचार किया गया। इस एजेंडा बिंदु में हुए निर्णय के अनुसार ऐसे सेवानिवृत्त अधिकारी-कर्मचारियों को विश्वविद्यालय द्वारा 35 हजार रुपये मानदेय भी दिया जायेगा। विश्वविद्यालय की कार्यवाही का लाभ समस्त सेवानिवृत्त अधिकारी-कर्मचारियों को मिलेगा या कुछ चुनिंदा चापलूसों को, इसका निर्णय जिम्मेदार अधिकारी चाटुकारिता के आधार पर करेंगे। गौरतलब है कि विश्वविद्यालय प्रशासन पिछले कुछ समय से नई नियुक्ति करने के प्रयास कर रहा है परंतु रोस्टर निर्माण के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा है। वहीं, करीब दो महीने पहले विश्वविद्यालय यंत्री रहे यादवेंद्र चौहान को सेवावृद्धि दी लेकिन राजभवन में हुई शिकायतों के चलते विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपने पैर वापस खींच लिये और उक्त आदेश रद्द कर दिया। हालाकि कहा जा रहा है कि कार्यपरिषद में उक्त निर्णय भी ऐसे ही विशिष्टों को लाभान्वित करने के लिए लिया गया है।
विवि ने युवाओं को किया नजर अंदाज
मामले को लेकर फिर से शिकायतों का दौर शुरु हो सकता है। बताते हैं कि उच्च शिक्षा विभाग के सचिव जेएन कंसोटिया ने 9 अगस्त 2012 को आदेश जारी किया था, जिसमें समस्त विश्वविद्यालय में संविदा नियुक्तियों पर रोक लगाई गई थी। इसी आदेश का हवाला देकर विश्वविद्यालय ने 8 दैवेभो कर्मियों का स्थाईकरण रोक रखा है। अब इस आदेश की अवहेलना कर कुछ चिन्हितों को लाभ देने विश्वविद्यालय ने कार्यपरिषद का सहारा लिया है। इस प्रकार विश्वविद्यालय प्रशासन एक ही आदेश को लेकर दोहरा व्यवहार अपना रहा है।