शहर के स्कूल की ऐसी है हालत, कैसे करेंगी प्राइवेट स्कूलों से कम्पटीशन
सरकार स्कूल प्राइवेट से इसी मामले में पीछे हो जाते हैं। सरकारी स्कूलों को फंड निजी से कहीं ज्यादा आता है लेकिन सब गायब हो जाता है। इसी तरह की बदहाल की मार शहर की ही पीएस मॉडल बेसिक स्कूल क्रमांक 2 भी झेल रही है। मासूमों के बैठने के लिए कमरे में जगह ही नहीं। क्षमता कम और बच्चे अधिक बैठ रहे हैं। इधर प्रशासन ध्यान ही नहीं दे रहा।
रीवा। गांव की स्कूलें ही सिर्फ अव्यवस्था का शिकार नहीं हैं। शहर भी इससे अछूता नहीं है। मुख्य शहर की सरकारी स्कूल बच्चों को पढ़ाने लायक नहीं है। यहां कमरे अस्त व्यस्त और गंदे हैं। यह सारा नजारा सरस्वती स्कूल और डाइट के बीच में संचालक मॉडल पीएस मॉडल बेसिक क्रमांक 2 का है। स्कूल में प्रायमरी तक के बच्चे पढ़ते हैं। इन बच्चों को पढऩे के लिए यहां प्रायमरी सुविधाएं तक नहीं है। बैठने के लिए पर्याप्त जगह और साफ सुथरा मैदान का आभाव है। नर्सरी में प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या इतनी अधिक है कि कमरा ही छोटा पढ़ रहा है। क्षमता से अधिक बच्चों को बैठाया जा रहा है। इसके अलावा अन्य कक्षाओं में दीवार आदि का रंग रोगन नहीं किया गया है। दीवारें जर्जर हो गई है। सुविधाओं के नाम पर स्कूल में कुछ भी अतिरिक्त देखने को नहीं मिला। हद तो यह है कि शासन ने अभी लाखों रुपए स्कूलों को रंगाई पुताई के लिए जारी किया था। फिर भी स्कूलों का कायाकल्प नहीं हो पाया।
चारो तरफ गंदगी का आलम
सरस्वती स्कूल के बाजू से ही स्कूल जाने का रास्ता है। इस रास्ते को ही लोगों ने शौच का स्थल बना लिया है। स्कूल का परिसर गंदगी से पटा हुआ है। इसके अलावा खेलने के लिए बच्चों के पास मैदान नहीं है। मैदान परिसर में पानी भरा हुआ है। हद तो यह है कि जब शहर के बीच में संचालित यह स्कूल इतनी बुरी हालत में है तो दूर दराज गांव में संचालित स्कूलों की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।