संजय गांधी अस्पताल पर मंडराया दवाइयों का संकट, स्टोर खाली हो रहा, मर्ज की दवा नहीं मिल रही

संजय गांधी स्मृति चिकित्सालय में दवाइयां खत्म हो रही है। कई दवाइयां खत्म हो चुकी है। शेष भी खत्म होने की कगार पर हैं। मरीजों को मर्ज के दर्द की दवा नहीं मिल रही है। प्रदेश सरकार कई महीनों से बजट नहीं दिया है। इसके कारण दवाइयां खरीदी नहीं हो पा रही है। स्थानीय स्तर पर खरीदी कर किसी तरह प्रबंधन काम चला रहा है। आने वाले दिनों में भी यदि बजट नहीं मिला तो नि:शुल्क दवा वितरण केन्द्र में ताला लग जाएगा।

संजय गांधी अस्पताल पर मंडराया दवाइयों का संकट, स्टोर खाली हो रहा, मर्ज की दवा नहीं मिल रही

रीवा। ज्ञात हो कि विंध्य के सबसे बड़े संजय गांधी स्मृति चिकित्सालय में हर दिन हजारों मरीज जांच और इलाज कराने पहुंचते हैं। यहां  मरीजों को जांच के अलावा दवाइयां भी नि:शुल्क ही मिलती है। हर दिन लाखों रुपए दवाइयों पर खर्च किया जाता है। हर तीन महीने में शासन से दवाइयों के लिए बजट जारी होता है लेकिन इस मर्तबा ऐसा नहीं हुआ। चुनाव के पहले से संजय गांधी अस्पताल की झोली खाली है। यहां दवाइयों के लिए बजट ही जारी करना मप्र शासन भूल गया। यही वजह है कि अब संजय गांधी अस्पताल की हालत बुरी हो गई है। स्वास्थ्य व्यवस्था बेपटरी हो गई है। मरीज परेशान हैं। उनके पास दवाइयों के लिए पैसे नहंी है और अस्पताल से दवाइयां मिल नहीं रही है। ओपीडी से जांच कराने के बाद मरीज बिना दवा के वापस लौट रहे हैं। यह स्थिति अभी की नहंी है। कई महीने से हालात बने हुए हैं। अस्पताल प्रबंधन मप्र शासन से कई मर्तबा पत्राचार कर दवाइयों के लिए बजट की डिमांड कर चुका है लेकिन कोई निराकरण नहीं हुआ। यही वजह है कि जीवनरक्षक दवाइयों का टोटा पड़ गया है।
करीब 50 से 60 लाख रुपए का आता है खर्च
संजय गांधी अस्पताल में दवाइयों पर ही सिर्फ 50 से 60 लाख रुपए हर महीने खर्च किया जाता है। अब सोच सकते हैं कि पिछले तीन महीने से शासन से बजट नहीं मिला है तो अस्पताल की हालत कैसी होगी। अस्पताल में ओपीडी और आईपीडी की दवाइयों की पूर्ति स्वशासी मद से लोकल पर्चेज कर कराई जा रही है। जल्द ही बजट नहीं मिला तो हालात और बिगड़ जाएंगे।
तीन महीने पहले मिला था दवाइयों का बजट
संजय गांधी अस्पताल को वर्ष 2023 में खुलकर बजट नहीं मिला। मप्र ने राशि जारी करने में कोताही बरती। पिछली मर्तबा दवाइयों के बजट के नाम पर करीब 80 से 80 लाख रुपए ही मिलते थे। इसी के भरोसे ही चुनाव के दौरान दवाइयों की पूर्ति की गई। अब सब खाली है। दवा के नाम पर बजट में कुछ भी नहीं है और शासन से रुपए नहीं मिल रहे हैं।


ढ़ाई से तीन हजार है ओपीडी
संजय गांधी अस्पताल में हर दिन ओपीडी में जांच कराने दो से ढ़ाई हजार मरीज पहुंचते हैं। इन मरीजों को जांच के बाद डॉक्टर दवाइयां भी लिखते हैं। लेकिन उन्हें दवाइयां मिल नहीं रही हैं। दवा काउंटर में अधिकांश दवाइयां नहीं दी जाती। काउंटर से मना कर दिया जा रहा है। बाहर से दवाइयां खरीदने के लिए बोला जा रहा है। बजट संकट के कारण प्रबंधन भी व्यवस्था बनाने में मजबूर है। किसी तरह लोकल पर्चेज से काम चला रहे हैं।
इन्होंने यह कहा
संजय गांधी अस्पताल इलाज कराने पहुंचे जीतू पटेल ने बताया कि हड्डी विभाग में दिखाने आया था। डॉक्टर ने दवा लिखी थी। दवा काउंटर में बोले दवाइयां नहीं है। बाहर से लेना पड़ेगा।
इसी तरह उचेहरा से इलाज कराने संजय गांधी अस्पताल पहुंचे अंकुर द्विवेदी ने बताया कि दवा लेने काउंटर पर आए थे। यहां दवा नहीं मिली। बोले दवाइयां नहीं हैं। बाहर से लेना पड़ेगा।