सुपर स्पेशलिटी में मचने वाली है भर्रेशाही, सिर्फ इस एक कोड से मच जाएगी लूटखसोट, बाबुओं की होगी चांदी और अधिकारी मलामाल
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की निर्भता मेडिकल कॉलेज से कम होने वाली है। अधीक्षक को पॉवर फुल बनाने की तैयारी चल रही है। सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के अधीक्षक अब सीधे वित्त से जुड़े फैसले ले सकेंगे और सीधे ट्रेजरी से बिल पास करा सकेंगे। इसके लिए इन्हें डीडीओ कोड जारी करने की कवायद शुरू हो गई है। हालांकि इससे बाबुओं की मनमानी और खरीदी, भुगतान में भर्रेशाही भी शुरू हो जाएगी।
संचालक चिकित्सा शिक्षा ने डीन मेडिकल कॉलेज से मांगा स्पष्ट अभिमत
डीडीओ देने से क्या है फायदे और क्या है नुकसान बताएंगे डीन
रीवा। ज्ञात हो कि सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में अधीक्षक की नियुक्ति कर दी गई है। अभी सारे काम अधीक्षक संजय गांधी अस्पताल या फिर मेडिकल कॉलेज से ही होते है। डीडीओ भी सुपर स्पेशलिटी के अधीक्षक के पास नहीं थे। दवाइयों की खरीदी संजय गांधी अस्पताल के अधीक्षक के एमपपीएचसीएल की आईडी से होती है। इसके कारण अभी तक सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में भर्रेशाही कम थी। अब इसमें थोड़ा बदलाव करने की कवायद शुरू हो गई है। संचालक चिकित्सा शिक्षा ने मेडिकल कॉलेज के डीन को पत्र लिखकर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के अधीक्षक का डीडीओ कोड आवंटित करने और एमपीपीएचसीएल की आईडी जारी करने के लिए अभिमत मांगा है। डीन से पुरानी व्यवस्था और नई व्यवस्था के लाभ हानि पर स्पष्ट बहुमत मांगा गया है। इसके बाद ही डीडीओ आवंटन का निर्णय लिया जाएगा।
डीडीओ मिला तो यह सारे काम यहीं से होंगे
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के अधीक्षक को यदि डीडीओ आवंटित हुआ तो मेडिकल कॉलेज और संजय गांधी अस्पताल पर निर्भरता कम हो जाएगी। अभी जो उपचार में महंगे उपकरणों की खरीदी, दवा खरीदी होती थी। वह सारी खरीदी और भुगतान सुपर स्पेशलिटी से होने लगेगी। कर्मचारियों का वेतन, आफिस खर्च का भुगतान, मेडिकल बिल और कर्मचारियों के अवकाश स्वीकृति के साथ ही अन्य सारे वित्तीय कार्य सुपर स्पेशलिटी से होने लगेंगे। अभी सारे प्रस्ताव बनाकर डीन मेडिकल कॉलेज के पास भेजना पड़ता है। इसमें समय लगता था। इतना ही नहीं अभी कोई भी प्रस्ताव विभागाध्यक्ष सीधे डीन को भेजते थे। वह सिस्टम बंद हो जाएगा। अधीक्षक के पास भेजना पड़ेगा।
यह होगा नुकसान और बढ़ेगा भ्रष्टाचार
सुपर स्पेशलिटी में अभी अधीक्षक का कद विभागाध्यक्षों से डिग्री के मामले में छोटा है। यही वजह है कि विभागाध्यक्ष कोई भी प्रस्ताव सीधे ही डीन को भेज देते हैं। डीडीओ मिलने के बाद विवाद बढ़ेगा। इतना ही नहीं यहां के कर्मचारी और लिपिक अभी कंट्रोल में हैं। डीडीओ मिलने के बाद कर्मचारियों से लूट खसोट बढ़ जाएगी। सुपर स्पेशलिटी में मरीजों को महंगे इक्यूपमेंट लगाए जाते हैं। दवाइयां भी महंगी होती है। इनकी खरीदी में भी हेरफेर तय है। इतना ही नहीं मेडिकल कॉलेज के पास जो प्रस्ताव भेजे जाते थे। वह भी नहीं जाएंगे। इससे डीन और अधीक्षक संजय गांधी अस्पताल बायपास कर दिए जाएंगे।