बड़े शर्म की बात: विंध्य में नहीं कोई दिलदार जो उठा सके इन का भी भार, जो बढ़ा रहे विंध्य का मान
विंध्य में दिलदारों की कमी है । पैसे तो अकूत हैं लेकिन दान देने वाले बहुत कम ही हैं। विंध्य के जंगल को तबाह कर अरबों की फैक्ट्रियां लग गईं। उद्यमी अरबों कमा रहे। वन्यजीवों के घर नष्ट कर दिए लेकिन इनके लालन पालन पर एक फूटी कौड़ी खर्च नहीं करते। मुकुंदपुर में सफेद बाघ की फिर वापसी हुई। अब यह विश्व में विंध्य को विश्व में पहचान दे रहा है लेकिन आर्थिक संकट की मार झेल रहा है। यहां स्थापित इंडस्ट्रियां चाहें तो एक झटके में ही यह संकट दूर कर दें लेकिन कोई भी सामने नहीं आता। इन्हें सिर्फ दिखावे के लिए वन्यप्रेमियों को लेकर फोटो खिंचवाना तो मंजूर है लेकिन उन्हें बचाने के लिए खर्च करना मंजूर नहीं है। रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली में दान देने वाले दिलदारों की कमी है। इनके पास धन सम्पत्ति तो अकूत है लेकिन विंध्य की पहचान को आगे बढ़ाने, संवारने का जूनन और जज्बा नहीं है। ऐसे लोगों के कारण ही चिडिय़ाघर को आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है।
दानवीरों को तरस रहा मार्तण्ड ङ्क्षसह जूदेव चिडिय़ाघर
बड़े बड़े उद्यमी और टैक्स पेयर हैं मौजूद लेकिन एक फूटी कौड़ी तक नहीं करते दान
रीवा। सालों बाद विंध्य में सफेद बाघ की वापसी हुई। मुकुंदपुर में मार्तण्ड सिंह जूदेव चिडिय़ाघर स्थापित किया। सफेद बाघ लगाया गया। अब यही सफेद बाघ और व्हाइट टाइगर सफारी देश, प्रदेश और विश्व में फिर से पहचान दिला रही है। यहां देश दुनिया से पर्यटक सफेद बाघ देखने पहुंच रहे हैं। रीवा-सतना को सफेद बाघ के नाम से जाना जाने लगा है। इस पहचान को लोग भुना तो रहे हैं लेकिन इन्हें गोद लेने के लिए सामने नहीं आ रहे हैं। विंध्य से सर्वाधिक टैक्स सरकार के खाते में पहुंचता है। बड़े बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट भी विंध्य में है। बड़े ट्रैक्स पेयर के रूप में यह सामने भी आते रहते हैं। यह इंडिस्ट्रयलिस्ट वन्यजीव प्रेमी भी हैं लेकिन इनका खर्च उठाने में दिलचस्पी नहीं लेते हैं। कंपनियां एक फूटी कौड़ी चिडिय़ाघर पर खर्च करने को आगे नहीं आती। साल में दान तक नहीं देते हैं। फिर भी इनहें सरकार वह सारी अनुमतियां देती है जो जंगल को तबाह करने के लिए काफी है। जंगल को उजाडऩे वाली इंडस्ट्रियलिस्ट इसकी भरपाई भी नहीं करती। वन्यजीवेंा के लालन पालन का खर्च सरकार ही उठा रही है। चिडिय़ाघर को बेहतर बनाने और वन्यजीवों के लिए सुविधाएं बढ़ाने में प्रबंधन को एढ़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। पर्याप्त बजट भी नहीं मिल पाता। ऐसे में यदि विंध्य के इंडस्ट्रियलिस्ट इस दिशा में आगे आएं तो मार्तण्ड ङ्क्षसह जूदेव हर मामले में देश और प्रदेश का नंबर वन चिडिय़ाघर बन सकता है। यहां वर्तमान में सिर्फ फंड की कमी के कारण कई सुविधाओं की कमी है। प्रबंधन चाह कर भी ऐसे काम नहीं करा पा र हा है जो यहां के लिए जरूरी है। टिकट काउंटर से आने वाली इंकम को ही इन वन्यजीवेंा के लालन पालन में खर्च कर काम चलाया जा रहा है। हद तो यह है कि इंडस्ट्रियलिस्ट तो ठीक है व्यापारी, डॉक्टर, सरकारी अधिकारी, विधायक, सांसद भी वन्यजीवेंा को गोद लेने के लिए आगे नहीं आते।
यह सारी बड़ी इंडस्ट्रियंा विंध्य में हैं
विंध्य अकूत खनिज सम्पदा अपने अंदर समेटे हुए हैं। सिंगरौली पावर हब है। यहां जंगलों को खत्म कर लगातार खदानें खोली जा रही हैं। वन्यजीवों के सामने उनके आवास तक का संकट खड़ा हो गया है। सिंगरौली में 11 थर्मल पॉवर प्लांट है। 16 कोल माइंस, 10 केमिकल कारखाने, 8 एक्सप्लोसिव, 309 क्रेशर प्लांट, स्टील प्लांट भी मौजूद हैं। अरबो रुपए का यहां टर्नओव्हर है। कई बड़ी कंपनियां पावर प्लांट चला रही हैं और आ रही है। इसके अलावा सतना में कई बड़ी सीमेंट फैक्टियां हैं। यहां एसीसी, बिरला, प्रिज्म सीमेंट, केजेएस सीमेंट फैक्ट्री, अल्ट्राटेक जैसी बड़ी सीमें फैक्ट्रियां है। रीवा में जेपी और अल्ट्राटेक हैं। इतने उद्योग होने के बाद भी एक फूटी कौड़ी चिडिय़ाघर के वन्यजीवों पर कोई खर्च करने के लिए आगे नहीं आते।
सिर्फ एक डॉक्टर ने दिखाया था आइना फिर भी नहीं आगे आए
चिडिय़ाघर के वन्यजीवों को गोद लेने के लिए सिर्फ एक डॉक्टर ही आगे आए थे। उन्होंने देवा भालू को सालभर के लिए गोद लिया था। गोद की सालभर की रकम भी चिडिय़ाघर प्रबंधन को सौंप दी थी। उन्होंने रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली के बड़े उद्यमियों और पैसों वालों को आइना दिखाने की कोशिश की थी लेकिन कोई भी इससे प्रभावित नहीं हुआ। अब भी चिडिय़ाघर प्रबंधन की तलाश जारी है।
वन्यजीवों को गोद लेने के लिए तय देय राशि
प्रजातियां वार्षिक अर्धवार्षिक त्रैमासिक महीना प्रतिदिन
बाघ, शेर 411000 210000 105100 35000 1151
तेंदुआ 165000 82000 41000 13000 501
भालू 110000 51000 27000 9100 301
गौर 300000 150000 75000 25000 1001
थामिन डीयर 90000 45000 23000 7100 251
सांभर 90000 45000 21000 7100 251
नीलगाय 90000 45000 21000 7100 251
बारहसिंगा 90000 45000 21000 7100 251
चीतल 36000 18000 10000 3100 101
कृष्णमृग 36000 18000 10000 3100 101
चिंकारा 36000 18000 10000 3100 101
हॉग डीयर 36000 18000 10000 3100 101
बार्किंग डीयर 21000 10000 5100 2100 101
जंगली सूअर 54000 27000 13000 5100 101
गोद लेने के लिए यह करना होगा
वन्यजीवों को गोद लेने के लिए इच्छुक वन्यजीव प्रेमियों को सतना मे ंदेय मेसर्स मध्य प्रदेश टाइगर फाउंडेशन सोसायटी सतना एसी नंबर 527302010016760 को देय बैंक/ नगद के साथ संलग्न फार्म मेमं गोद लेने के लिए आवेदन कर सकते हैं। गोद लेने के शुल्क के साथ आवेदन पत्र निदेशक, महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव व्हाइट टाइगर सफारी और चिडिय़ाघर मुकुंदपुर के कार्यालय में किसी भी कार्य दिवस पर सुबह 10.30 बजे से शाम 5.30 बजे तक जमा किया जा सकता है।
यह मिलेगा फायदा
भुगतान की गई राशि पर धारा 80 जी (5) के तहत आयकर में छूट मिलेगी। गोद लेने का अधिकारिक प्रमाण पत्र गोद लेने वाले व्यक्ति, संस्था और संगठन को प्रदान किया जाएगा। गोद लिए गए वन्यप्राणी का नाम, अवधि का प्रदर्शन पट्टिका बाड़े के बाहर लगाई जाएगी। वर्षभर गोद लेने पर उस व्यक्ति का नाम उसकी सहमति से वन विहार के प्रवेश द्वारों पर प्रदर्शित की जाएगी। भुगतान की गई राशि के 10 फीसदी राशि नि:शुल्क पास अंगीकर्ता को भ्रमण, सफारी के लिए अंगीकृत अवधि के दौरान प्रदान किया जाएगा। गोद लेने वाले वन्यजीव के साथ एक फोटो भी प्रदान की जाएगी।