मेडिकल कॉलेज का यह भी खाद बनाने का अजीब फर्जीवाड़ा है, सुनेंगे तो उड़ जाएंगे होश

श्याम शाह मेडिकल कॉलेज में वाटर और सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के नाम पर फर्जीवाड़ा चल रहा है। सालों से ठेकेदार खाद बनाने और गंदा पानी साफ करने के नाम पर लाखों रुपए महीने ले रहा है लेकिन एक मु_ी खाद तक नहीं बनी। पानी ट्रीटमेंट के नाम पर खारा पानी पहुंच रहा है। इसका उपयोग भी अस्पताल प्रबंधन नहीं कर पा रहा है। सिर्फ बटन दबाकर पानी ऊपर तक पहुंचाने के लिए करीब 14 लाख और खाद बनाने के नाम पर करीब 15 लाख साल में अदा किया जा रहा है। अब ऐसे में इस फर्जीवाड़े का अंदाजा लगाया जा सकता है।

मेडिकल कॉलेज का यह भी खाद बनाने का अजीब फर्जीवाड़ा है, सुनेंगे तो उड़ जाएंगे होश
sgmh file photo

रीवा। श्याम शाह मेडिकल कॉलेज और संजय गांधी अस्पताल में लूटखसोट मची है। जो जितना चाहे लूट रहा है। इसकी मॉनीटरिंग करने वाला कोई नहीं है। ऐसा ही एक मामला सीवरेज और वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का भी सामने आया है। इसका टेंडर हर साल किया जाता है। पीएचई विभाग टेंडर करता है। भुगतान मेडिकल कॉलेज से किया जाता है। दोनों प्रोजेक्ट का मिलाकर यह खर्च करीब 30 लाख के आसपास पहुंचता है। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत इसलिए की गई थी कि अस्पताल से निकलने वाले सीवरेज का सदुपयोग हो सके। सीवरेज के कचरा से खाद बनाना और गंदा पानी को ट्रीट कर दोबारा उपयोग में लाने के लिए शुरू किया यह प्रोजेक्ट सिर्फ कमाई का जरिया बनकर रह गया है।  सिर्फ खानापूर्ति ही हो रही है। सीवरेज से खाद बनी ही नहीं। कचरा के रूप में एकत्र तो हुआ लेकिन किसी के उपयोग में नहीं आया। हद तो यह है कि इसका टेंडर पीएचई करता है। पीएचई को खुद लोगों को साफ सुथरा पानी नहीं पिला पाया वह एसजीएमएच में ट्रीटमेंट का काम करा रहा है। रीवा नगर निगम में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी पीएचई नहीं शुरू कर पाया।
ठेकेदार कह रहा कोई खाद ले ही नहीं जाता
एसजीएमएच में सीवरेज से खाद बनाने के लिए लाखों रुपए हर साल अदा किए जा रहे हैं। इससे एक मु_ी खाद तक तैयार नहीं हुई है। कोई भी इसका फायदा  नहीं उठा पाया। यहां तक की एसजीएमएच और जीएमएच में भी इस खाद का उपयोग नहीं हुआ। ऐसे में स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
पानी का ट्रीटमेंट भी नहीं हो रहा
ठेकेदार के पास गंदे पानी का ट्रीटमेंट कर दोबारा उपयोग करने के लायक बनाने की भी जिम्मेदारी है। यह काम भी नहीं हो रहा है। सरकारी पंप और मोटर से बोर के पानी को ही टंकियों में चढ़ाकर खानापूर्ति की जा रही है। इसके पहले भी खाद और वाटर ट्रीटमेंट में गड़बड़ी का मुद्दा उठा था लेकिन सब में लीपापोत कर दी गई।
उपयोग लाक नहीं रहता पानी
संजय गांधी अस्पताल में ट्रीट करने के बाद ही पानी चढ़ाया जाता है लेकिन यह किसी के उपयोग लायक नहीं रहता। पानी पीने योग्य नहीं रहता। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रबंधन इसती मोटी रकम जिस काम में खर्च कर रही है उसका परिणाम कितना सार्थक मिल रहा है। पीने के पानी के लिए लोगों को इधर उधर भटकता पड़ता है।