यह किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं: रीवा के एक कोच ने बेटियों को घर के आंगन में दी ट्रेनिंग और रणजी तक पहुंचा दिया

रीवा का एक क्रिकेटर रणजी में जगह नहीं बना पाया फिर भी उसने हार नहीं मानी। रणजी और इंटरनेशनल टीम में चयनित नहीं होने पर खुद को दौड़ से बाहर कर लिया लेकिन क्रिकेट नहीं छोड़ी। बेटियों को क्रिकेटर बनाने का काम शुरू कर दिया। घर के आंगन में ही क्रिकेट पिच बनाई और ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया। कई जिलों से यहां बेटियों ने क्रिकेट कोच से ट्रेनिंग ली। अब वही बेटियां नई मुकाम पर पहुंचने लगी है। रीवा के क्रिकेटर की सिखाई शुचि का चयन रणजी में हुआ है। कई अंडर 19 और 23 की महिला टीम में शामिल हुई हैं। कोच की मेहनत ने रंग लाना शुरू कर दिया है। यह कहानी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है।

यह किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं: रीवा के एक कोच ने बेटियों को घर के आंगन में दी ट्रेनिंग और रणजी तक पहुंचा दिया

पिता बेटे को क्रिकेटर बनाना चाहते थे, बेटे ने जीतोड़ मेहनत की सफल नहीं हुआ
क्रिकेटर बन नहीं पाया तो कोच बनने का फैसला लिया, मंडाला की बेटी को ट्रेनिंग देकर रणजी तक पहुंचाया
रीवा। आपने इकबाल और घूमर जैसी फिल्में तो जरूर देखी होंगी। इन फिल्मों में ऐसे क्रिकेट कोच तो देखें होंगे जो खुद तो सफल नहीं हुए लेकिन अपने शिष्यों को सफल करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। ऐसे ही कोच रीवा के इन्द्रदेव भारती उर्फ स्वामी जी भी हैं। जिन्हें क्रिकेट में इंटरनेशनल क्रिकेट तक पहुंचने का मौका नहीं मिला तो कोच बन गए। उन्होंने बेटियों को क्रिकेट का मास्टर बनाने का फैसला लिया। उनके पास सिखाने के लिए खेल मैदान नहीं था तो घर के सामने आंगन में ही टर्फ विकेट पिच खुद के पैसे खर्च कर बना डाली। इसी आगन में बेटियों को क्रिकेट की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी। अब उनके इसी जूनन का परिणाम सामने आने लगा है। स्वामीजी की कोचिंग से निकली शुचि उपाध्याय का चयन रणजी टीम में हो गया है। यह सिर्फ शुचि के लिए ही उपलब्धि नहीं है। रीवा के लिए भी गौरव का पल है कि रीवा के एक कोच ने बेटियों को क्रिकेट में कामयाबी हासिल करने योग्य तैयार किया। आपको यह भी जान कर ताज्जबु होगा कि शुचि उपाध्याय मूल रूप से रहने वाली मंडला की हैं। उनके माता पिता मंडला के हैं। वह सिर्फ स्वामीजी का नाम सुनकर रीवा कोचिंग लेने आईं थी। स्वामी जी की कोचिंग ने शुचि को नई पहचान और मुकाम दिलाई है।
पिता क्रिकेटर बनाना चाहते थे
इंद्रदेव भारती के पिता राजमणि विश्वकर्मा पेशे से एक शिक्षक हैं। वह सरस्वती शिशु मंदिर निराला नगर में शिक्षक के पद पर पदस्थ हैं। उनका सपना था कि उनका बेटा क्रिकेटर बने और इंडियन टीम में खेले। हालांकि उनका यह सपना पूरा नहीं हो पाया। वर्ष 2013 में 23 की उम्र पार करने के बाद जब रणजी में चयन नहीं हुआ तो बेटे ने कोचिंग देने का फैसला लिया। पिता ने भी उनका हर कदम पर साथ दिया। अब उनके पिता का साथ उन्हें कोच के रूप में नई पहचान दिलाने जा रहा है।


जबलपुर संभाग से प्रतिनिधित्व कर रही हैं शुचि
रीवा में क्रिकेट सीखने वाली शुचि उपाध्याय का जबलपुर संभागीय क्रिकेट संघ से रणजी टीम के लिए चयन हुआ है। वह जबलपुर क्रिकेट संघ का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। शुचि उपाध्याय लेफ्ट आर्म बालर हैं। कोच स्वामी जी ने बताया कि शुचि अंडर 19 और अंडर 23 में भी चयनित हो चुकी हैं। उनके नाम अब तक का सबसे अधिक विकेट लेने का भी रिकार्ड है। यह पहली बार है कि कोई स्वामी जी की सिखाई खिलाड़ी का चयन रणजी में हुआ है।
शुचि के पिता ने भी माना आभार
शुचि उपाध्याय महिला क्रिकेटर के पिता सुधीर उपाध्याय ने बताया कि उनकी बेटी बीच बीच में ट्रेनिंग के लिए रीवा जाती रहती हैं। उनके कोच स्वामीजी ही हैं। उन्होंने स्वामी जी की जमकर तारीफ की है और कहा कि उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि वह आज रणजी टीम में खेल रही हैं।