इस मर्तबा 14 जनवरी को नहीं पड़ रहा मकर संक्रांति, जानिए क्या है वजह और कब मनेगी संक्रांति

पौष या माघ मास में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो उस काल विशेष को ही संक्रांति कहते हैं। इस वर्ष पौष मास, 14 जनवरी की मध्य रात्रि 02.54 बजे सूर्य के मकर राशि में प्रवेश होते ही मकर संक्रांति का पर्व काल प्रारम्भ हो जायेगा। वैसे तो यह पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन इस वर्ष संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी को मनाया जायेगा। इसके पहले वर्ष 2015 व 2016 में मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई गई थी।

इस मर्तबा 14 जनवरी को नहीं पड़ रहा मकर संक्रांति, जानिए क्या है वजह और कब मनेगी संक्रांति
file photo makar sankranti

रीवा। मकर संक्रांति मुख्यत: स्नान एवं दान का महापर्व माना गया है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार संक्रांति प्रवेश चाहे प्रात: काल, मध्यान काल में अथवा सायंकाल या अद्र्ध रात्रि के बाद हो, उसी दिन से सौर मास की प्रथम तारीख मानी जाती है। मकर संक्रांति में पुण्य काल का सर्वाधिक महत्व है। इस अवधि में किए हुए स्नान दान शीघ्र फलदाई होते हैं। मुख्यत: संक्रंाति प्रवेश के काल से 40 घटी पश्चात तक संक्रांति का पुण्य काल माना गया है। सामान्यत: 40 घटी 16 घंटे के बराबर होती है।
संक्रांति विशुद्ध खगोलीय घटना
मकर संक्रांति खगोल विज्ञान, ज्योतिष एवं आध्यात्म के अद्भुत समन्वय का महापर्व है। हिंदू धर्म में सूर्य जागृत देव कहे गए हैं और ज्योतिष में आत्मकारक, इसलिए इनके विभिन्न राशियों में भ्रमण को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। मकर संक्रांति विशुद्ध खगोलीय घटना है। सूर्यदेव के इस राशि परिवर्तन को आध्यात्मिक दृष्टि से भी विशेष महत्व प्राप्त है। मान्यताएं है कि सूर्य के उत्तरायण होने पर प्रकाश की वृद्धि के साथ-साथ संपूर्ण जीव जगत की चेतना एवं कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 12 राशियां होती हैं। इन सभी 12 राशि में सूर्य का प्रवेश संक्रांति काल माना जाता है। इनमें से मकर संक्रांति को सौम्यायन संक्रांति कहते हैं, जो वर्ष की सर्वाधिक महत्वपूर्ण संक्रांति में से एक कही गई है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उत्तरायण व दक्षिणायन प्रारंभ होने के दिन से किए गए दान-पुण्य का फल कोटि-कोटि गुना अधिक होता है।
अश्व पर सवार होकर आयेगी संक्रांति
ज्योतिर्विद राजेश साहनी ने बताया कि 14-15 जनवरी की मध्य रात्रि 02.54 बजे सूर्य देव का प्रवेश मकर राशि पर होगा और यहीं से मकर संक्रांति के पर्व का प्रवेश होगा। तात्कालिक चंद्र कुंभ राशि में संचरण करेगा। वृष्टिकरण में संक्रांति का प्रवेश होगा। संक्रांति का रात्रि मान 51 घटी होगा तथा यह संक्रांति शतभिषा नक्षत्र में प्रविष्ट होगी।  वर्ष 2024 की मकर संक्रांति अश्व नामक वाहन पर सवार होकर आएगी एवं इसका उपवाहन सिंहनी होगा। मकर संक्रांति श्याम वस्त्र पहनकर प्रविष्ट होगी और इसकी दृष्टि दक्षिण पश्चिम पर होगी। खिचड़ी नामक पदार्थ का सेवन करते हुए संक्रांति का प्रवेश होगा। इसका पुष्प दूर्वा, आभूषण घुँघची तथा संक्रांति का गमन पूर्व की ओर होगा।
कैसे मनाएं मकर संक्रांति
मान्यताओं के अनुसार इस दिन से दिन तिल भर बड़ा होता है। आयुर्वेद के अनुसार यह शरद ऋतु के अनुकूल होता है, इसलिए मकर संक्रांति के अवसर पर तिल का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। ज्योतिष की मान्यताओं के अनुसार सूर्य देव का शनि की राशि में प्रवेश शुभ घटना नहीं मानी जाती है इसलिए इस दोष के निवारण के लिए स्नान और दान का विधान रखा गया है। इस प्रकार से जिन लोगों की जन्म पत्रिका में सूर्य एवं शनि का दोष हो उनके लिए मकर संक्रांति एक शुभ अवसर है। उन्हें संक्रांति के अवसर पर किसी तीर्थ स्थान में स्नान करते हुए यथासंभव दान करना चाहिए। संक्रांति काल में जन्म कुंडली के अशुभ ग्रह संबंधी दान तथा उपाय करते हुए संपूर्ण वर्ष के लिए उनकी अशुभताओं को नष्ट कर सकते हैं। इस दिन सूर्य के साथ शिव के पूजन का विशेष महत्व माना जाएगा। इस दिन तिलयुक्त जल से स्नान, तिल का उबटन, तिलयुक्त जल का सेवन, तिल का भोजन, तिल से हवन और तिल का दान किया जाना चाहिए। संक्रांति प्रारंभ होने के पश्चात स्नान आदि से निवृत होकर सूर्य को अघ्र्य देने के बाद यथासंभव दान किया जाना शास्त्र सम्मत माना गया है। पिछले 1 माह से चला आ रहा खरमास भी मकर संक्रांति के शुभ योगों के साथ समाप्त हो जाएगा तथा 15 जनवरी से सुप्त पड़े मंगल मुहूर्त जागृत हो उठेंगे।
किला परिसर में मेले की तैयारी शुरू
किला परिसर में लगने वाले एक दिवसीय मेले की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। किला परिसर में 15 जनवरी को मेला लगेगा। ज्ञात हो कि हर वर्ष किले में यह मेला लगता रहा है। मेेले में जिले के दूरस्थ अंचलों से व्यापरी दुकानें लगाने आ रहे हैं। जिन्हें किला प्रशासन की तरफ से पानी बिजली, रहने के साथ-साथ पूरी सुरक्षा दी जा रही है। ऐसी व्यवस्था से संतुष्ट नईगढ़ी, देवतालाब, मुकुंदपुर के कई व्यापािरयों ने किला परिसर में अपनी दुकानें जमा दी हैं। वहीं नगर के दुकानदार 14 जनवरी को अपनी दुकानें जमायेंगे। बताया गया कि मेले में करीब पांच सौ छोटे व बड़ी दुकानें लगेंगी। जिसमें लाई, गन्ना, खिलौने, झूले, गुब्बारा, बासुरी, सौंदर्यप्रसाधन, फूल, नारियल, पान व ट्रेक्टर एजेंसी के प्रतिष्ठान रहेंगे।
यहां भी लगेगा मेला
इसके अलावा संक्रांति का मेला जिले में जगह-जगह आयोजित होगा। खासतौर पर गुढ़ कष्टहरनाथ मंदिर, पुरवा प्रपात, क्योंटी प्रपात, देवतालाब, विरसिंहपुर, खजुहा धड़ेश्वर मंदिर में वृहद मेला लगेगा। ऐसे ही जिलेभर के गांव कस्बों के कुछ प्रमुख जलाशयों के नजदीक भी संक्रांति के दिन मेला लगा करता है, जहां ग्रामीणवासी अपनी जरूरतों के हिसाब से खरीददारी करते हैं।
मकर संक्रांति का पुण्यकाल
- 15 जनवरी को मकर संक्रांति का सामान्य पुण्यकाल प्रात: 06.51 से अपरान्ह 05.37 बजे तक होगा।
-इसमें महापुण्य काल प्रात: 06.51 से प्रात: 08.40 बजे तक है, जिसमे स्नान दान एवं सूर्योपासना का विशिष्ट महत्व माना गया है।