महिला ने कराई नसबंदी और हो गई फेल, फिर जन्में 5 बच्चे अब मांग रहे हर्जाना

स्वास्थ्य विभाग की छोटी सी लापरवाही ने एक परिवार को भुखमरी की कगार पर पहुंचा दिया है। अब बच्चों के लालन पालन का खर्च तक माता पिता नहीं उठा पा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग से पति, पत्नी इस लापरवाही का हर्जाना मांग रहे हैं। नसबंदी फेल होने से महिला ने 5 बच्चों को जन्म दिया। कुल 8 बच्चे हो गए हैं। इनमें अधिकांश कुपोषित हैं।

महिला ने कराई नसबंदी और हो गई फेल, फिर जन्में 5 बच्चे अब मांग रहे हर्जाना
पीड़ित व्यक्ति बच्चों के साथ

रीवा। मामला रीवा जिले के गंगेव ब्लाक अंतर्गत बांस गांव का है। महेश साकेत और कुशुमकली के कुल 8 बच्चे हैं। इनमें 6 बेटियां और 2 बेटे हैं। एक की मौत हो चुकी है । बच्चों की यह संख्या स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के कारण हुई। परिवार इतने बच्चे नहीं चाहता था लेकिन लापरवाही से संख्या बढ़ गई। अब इसकी सजा माता पिता के

साथ ही बच्चे भुगत रहे हैं। माता पिता बच्चों का लालन पालन तक ठीक ढ़ंग से नहीं कर पा रहे हैं। उनकी इस हालत का हिम्मेदार स्वास्थ्य विभाग ही है। दरअसल वर्ष 2011 के पहले कुशुमकली के सिर्फ 3 ही बच्चे थे। इसके बाद उसने नसबंदी का आपरेशन कराया। नसबंदी का ऑपरेशन लालगांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर कैम्प में 9 जनरवरी 2011 को हुआ। इसके बाद से दोनों पति पत्नी को आश्वस्त थे कि अब बच्चे नहंी होंगे लेकिन सरकारी अस्पताल की नसबंदी ने दबा दे दिया। नसबंदी के बाद फिर कुसुमकली गर्भवती हो गई। 3 के बाद 6 और डिलीवरी हुई। इसमें से पांच बच्चे जीवित हैं वहीं एक की मौत हो चुकी है। इतने बच्चे होने के कारण अब माता पिता के सामने उनके लालन पालन की समस्या खड़ी हो गई है। पति पत्नी दोनों ही मजदूरी करते हैं। बिना मजदूरी बच्चों को खाने तक के लाले पड़ जाते हैं। इस लापरवाही पर  महेश ने डॉक्टर सहित ऑपरेशन करने वाले नर्सिंग स्टाफ की शिकायत भी की लेकिन संबंधित अधिकारियों ने कोई कार्यवाही नहीं की।
प्रशासन से मांगा हर्जाना
महेश बताते हैं कि परिवार की हालत ठीक नहीं है। 3 बच्चे पहले ही हो चुके थे। अन्य संतान का बोझ वह नहीं उठा सकता था। इसलिए पत्नी ने नसबंदी कराने का फैसला लिया था लेकिन नसबंदी के बाद भी वह गर्भवती हो गई। इसमें स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर और स्टाफ की लापरवाही रही। इसके कारण पीडि़त ने प्रशासन से इस लापरवाही पर हर्जाना की मांग की  है।
रहने के लिए घर नहीं बच्चों का इलाज का खर्च अलग
महेश के परिवार के पास रहने के लिए घर तक नहीं है। कच्चे और टूटेफूटे मकान में ही परिवार रहता है। उन्हें शासन की योजनाओं का भी फायदा नहीं मिला है। इतना ही नहीं इसके साथ एक दर्द और जुड़ा हुआ है। बच्चों में अधिकांश कुपोषित हैं। महेश का कहना है कि 6 साल की उम्र पार करने के बाद बच्चों का वजन कम हो जाता है। कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। चलने फिरने तक में दिक्कतें होती हैं।