जू संचालक ने सफेद बाघ के लिए दिल्ली तक लगाई दौड़, जानिए क्या मिला
विंध्या की मौत के बाद मुकुंदपुर चिडिय़ाघर में नए सफेद बाघ घट गए हैं। अब सिर्फ दो ही बचे है। नए बाघों के तलाश में संचालक लगे हुए हैं। दिल्ली से सफेद बाघ लेने के लिए उन्होंने दौड़ भी लगाई लेकिन हाथ कुछ नहीं लगा। सिर्फ आश्वासन लेकर वापस आ गए है। अब अनुमति और स्वीकृति पत्र मिलने का इंतजार है।
रीवा।
विंध्या की मौत के बाद अब चिडिय़ाघर में सिर्फ दो सफेद बाघ ही बचे हैं। सोनम और रघू कुनबा नहीं बढ़ा पा रहे हैं। दिल्ली और ग्वालियर से सफेद बाघ मांगे गए, लेकिन दोनों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। सफेद बाघ के बदले में वन्यजीव मांग रहे हैं। मार्तण्ड सिंह जूदेव चिडिय़ाघर फिलहाल कोई भी वन्यजीव देने की स्थिति में नहीं है। इसके बाद भी प्रबंधन की कोशिश लगातार जारी है। हाल ही में 4 जुलाई को चिडिय़ाघर संचालक सूरज सिंह सेन्द्रयाम ने दिल्ली की दौड़ लगाई थी। दिल्ली पहुंच कर सेंट्रल जू अथॉरिटी और चिडिय़ाघर संचालक से भी मिले। सफेद बाघ देने की सहमति चाही। फिलहाल आश्वासन मिला है। जब तक अनुमति नहीं मिलती तब तक कुछ भी कहना बेमानी होगी।
40 साल बाद सफेद बाघ की वापसी हुई
चिडिय़ाघर की स्थापना हुई तो विंध्या के रूप में 40 साल बाद सफेद बाघ की वापसी हुई। अब यही विंध्या उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंच गई है। विंध्या को जब मुकुंदपुर लाया गया था तब उसकी उम्र सिर्फ 9 साल थी। सफारी की शान थी। प्रबंधन और प्रशासन को उम्मीद थी कि विंध्या से ही मुकुंदपुर में सफेद बाघों का कुनबा आगे बढ़ेगा। हालांकि ऐसा संभव नहीं हो पाया। उम्र बढऩे के कारण विंध्या की सेहत पर असर पड़ा और उसकी मौत हो गई। इसके पहले व्हाइट टाइगर गोपी की मौत 23 दिसंबर 2020 को गई। वहीं सफेद बाघ राधा की जान 6 दिसंबर 2016 की भी जान जा चुकी है।
अब सिर्फ दो ही सफेद बाघ बचे हैं
सफेद बाघ की चिडिय़ाघर में कभी बहार थी। यहां राधा, गोपी, सोनम, विंध्या और रघू थे। एक एक कर तीन सफेेद बाघों की मौत हो चुकी है। यह सफेद बाघ कई राज्यों से लाए गए थे। बाघों का कुनबा बढ़ाने के लिए कई प्रयोग किए गए लेकिन प्रबंधन सफल नहीं हो पाया। अब सफेद बाघों की संख्या घट कर सिर्फ दो ही रह गई है। जो बचे हैं, वह प्रजनन के योग्य नहीं है। ऐसे में यदि नए सफेद बाघ नहीं आए तो इनकी संख्या बढऩी भी मुश्किल हो जाएगी।
यहां मार खा रहे हैं
मार्तण्ड ङ्क्षसह जूदेव चिडिय़ाघर एवं व्हाइट टाइगर सफारी नया है। इसको शुरू हुए कुछ ही वर्ष हुआ है। मेटिंग का प्रयोग भी सफल नहीं हुआ। शाकाहारी वन्यजीवों की संख्या भी नहीं बढ़ पाई। इसके कारण किसी चिडिय़ाघर को मुुकुंदपुर चिडिय़ाघर वन्यजीव देने के लिए भी सक्षम नहीं है। यहीं पर प्रबंधन मार खा रहा है। जहां से भी वन्यजीव की डिमांड की जाती है, वही बदले में कुछ न कुछ मांग बैठता है। इसी में सारा पेच फंस रहा है।