यह रीवा शहर है, अरबों खर्च होने पर भी जनता गड्ढे और धूल से परेशान
वर्तमान भाजपा नेताओं का कहना है कि रीवा शहर में वर्ष 2003 के बाद तेजी से विकास हुआ। शहर में जगह-जगह वर्ष 2003 के पहले सडक़ों की होर्डिंग भी लगाई है। बहरहाल, इन 20 वर्ष के दौरान शहर में इतना विकास हुआ कि चोरहटा से रतहरा तक 14 किलोमीटर सडक़ को करीब 14 बार खोदा बनाया गया। हाल ही में जो चोरहटा से रतहरा तक 14 किलोमीटर सडक़ बनी है, इसके लिए 100 करोड़ लागत आई है यानि करीब 9 करोड़ प्रति किलोमीटर। इस पर भी इस सडक़ निर्माण की गुणवत्ता का अंदाजा सफर करने वाले नागरिक लगा लेते हैं। रीवा को इतना बजट मिला कि नया शहर बस जाता फिर भी जनता को मूलभूत सुविधाओं में ही उलझा कर रखे हैं। एक ही निर्माण को बार बार तोड़ते- बनाते हैं। क्वालिटी कहीं नहीं है।
रीवा।
प्रोजेक्ट को लेने से कई जिलों ने मना कर दिया था
सिरमौर चौराहा से विश्वविद्यालय तक सडक़ वर्ष 2015 में बनी और 2017 में पेयजल लाइन के लिए सडक़ को खोद दिया गया। वर्ष 2017 में पेयजल लाइन के लिए शहर के अन्य गली-मोहल्लों की सडक़ें भी खोदी गईं। जैसे-तैसे जनता इससे उबर पाई। इसके उपरांत वर्ष 2018 में रीवा शहर का सबसे भयावह प्रोजेक्ट आया सीबर लाइन प्रोजेक्ट। इस प्रोजेक्ट को लेने से प्रदेश के कई जिलों ने मना कर दिया था परंतु रीवा के विकासपुरुष ने इसे हाथोहाथ स्वीकार किया। सीबर लाइन प्रोजेक्ट के आते ही शहर में ऐसी त्रासदी आई कि लगभग हर गली-मोहल्ले की सडक़ को खोद डाला। यह कार्य अब भी बदस्तूर जारी है। अभी अक्टूबर 2023 में ही चुनाव के चलते नेहरु नगर जैसे कुछ इलाकों में सडक़ों का डामरीकरण हुआ, जिसे सीवर लाइन वालों ने फिर खोद दिया।
पैसा क्या घर से आ रहा
विकासपुरुष से यह पूछने वाला कोई नहीं है कि यह जो हर दिन शहर की सडक़ें खोदी और बनाई जा रही हैं, इसके लिए पैसे क्या उनके घर से खर्च हो रहे हैं। शहर के इस अनियोजित विकास को देखकर लगता है कि विकासपुरुष की इंजीनियरिंग की डिग्री ही फर्जी है। इन 20 वर्षों में शायद ही कभी ऐसा हुआ हो, जब नागरिकों को सडक़ों में उड़ती धूल न मिले। कई लोग तो अस्थमा के रोगी हो गए हैं और साहब के चेले कहते हैं कि हमने बहुत विकास किया।