52 एकड़ भूमि छीनी, फिर जीईसी को डीम्ड बनाने मुख्यमंत्री से करवाई घोषणा, 5 वर्ष बीतने के बाद भी नहीं हुई पूरी

शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज अभी तक डीम्ड विश्वविद्यालय नहीं बन सका। इस तरह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा हवा में ही रह गई।

52 एकड़ भूमि छीनी, फिर जीईसी को डीम्ड बनाने मुख्यमंत्री से करवाई घोषणा, 5 वर्ष बीतने के बाद भी नहीं हुई पूरी
mla rajendra shukla

रीवा।
बताते हैं कि तकनीकी शिक्षा विभाग ने ही अब जीईसी को डीम्ड विश्वविद्यालय बनाने वाली फाइल डम्प कर दी है। तकनीकी कारणों से विभाग ने शासन की इस पहल को अंजाम तक नहीं पहुंचाया। अब 5 वर्ष बीत जाने के बाद जीईसी को डीम्ड बनाने कोई कार्यवाही होती नहीं दिख रही है। गौरतलब है कि गत वर्ष 2017 में जिला प्रशासन ने जीईसी की 52 एकड़ से ज्यादा भूमि छीन ली। कुछ भूमि कॉलेज की बोर्ड ऑफ गवर्नेंस (बीओजी) में तत्कालीन तकनीकी शिक्षा मंत्री की अनुशंसा से तो कुछ जबरन जिला प्रशासन ने नोच ली। इसमें मुख्य रूप से जिला न्यायालय के नवीन भवन के लिए जीईसी की 19 एकड़ भूमि अधिग्रहित करना रहा। आरोप है कि तत्कालीन रीवा विधायक राजेंद्र शुक्ला के इशारे पर यह सब हुआ। इस अधिग्रहण का विद्यार्थियों से लेकर अधिवक्ताओं तक ने जबरदस्त विरोध किया। आखिर में किसी तरह जिला प्रशासन ने विरोधी आवाजों को दबाया और मनचाही भूमि हड़प ली। इस विरोध को खत्म करने के लिए ही गत 4 अप्रैल 2018 में विंध्य महोत्सव के मौके पर तत्कालीन मुख्यमंत्री ने जीईसी को डीम्ड बनाने का लॉलीपॉप दिया था। साथ में जीईसी को 1 सामुदायिक भवन, कुछ ई-टाइप के मकान और परिसर में रोड-बिजली के लिए 6 करोड़ खर्च करने की बात हुई, जो पूरी नहीं हो सकी।

एक ने दी, दूसरे ने छीनी
बताते हैं कि वर्ष 2014 में तत्कालीन कलेक्टर एसएन रूपला ने जीईसी को पूरी 165 एकड़ भूमि का आधिपत्य सौंपा था। उसके बाद 5 जुलाई 2016 को तत्कालीन कलेक्टर राहुल जैन ने संचालक तकनीकी शिक्षा को भेजे पत्र में बताया कि आवश्यकता से अधिक भूमि होने के कारण जीईसी से 14 हेक्टेयर यानि तकरीबन 35 एकड़ भूमि अधिग्रहित की जा रही है। मजे की बात तो यह है कि तत्कालीन कलेक्टर जैन ने तकनीकी शिक्षा संचालक को भेजे इस पत्र की प्रतिलिपि जीईसी प्रबंधन को नहीं दी। भोपाल तकनीकी शिक्षा कार्यालय से जब तक जीईसी को इस बाबत जानकारी मिलती, तब तक यहां बड़ा खेल हो चुका था।

कमिश्नर का हैरत भरा पत्र
विगत 1 मार्च 2016 को डिप्टी कमिश्नर रीवा बीएल साकेत ने एक पत्र कलेक्टर को लिखा, जिसमें आश्चर्यजनक जीईसी की 65 हेक्टेयर भूमि यानि लगभग पूरी 165 एकड़ भूमि आवश्यकता से अधिक बता दी। लिहाजा डिप्टी कमिश्नर ने जीईसी की भूमि का बड़ा हिस्सा माखनलाल विश्वविद्यालय, जिला अभियोजन अधिकारी कार्यालय, हाउसिंग बोर्ड और यूनियन बैंक को देने के लिए कह दिया। मौजूदा स्थिति में जीईसी अपने हिस्से की 52 एकड़ भूमि गवां चुका है।

उभरते एकेडमिक कारीडोर में घुसा न्यायालय 

शहर में मॉडल स्कूल से लेकर एपीएस विश्वविद्यालय तक एक एकेडमिक कारीडोर उभर रहा था, जहा सिर्फ खिलखिलाते छात्रों का हुजूम ही नजर आता। लेकिन अब वहा न्यायालय घुस गया है, जिसके चलते यहां पुलिस और अपराधियों की भीड़ भी नजर आयेगी..जिलेवासियों को कानून के कलेक्ट्रेट से नवीन न्यायालय भवन तक पहुंचने अतिरिक्त पैसे खर्च करने पड़ेंगे..वो अलग। कुछ बुद्धिजीवी मानते हैं कि अगर मार्तंड स्कूल 3 की भूमि में ये न्यायालय बना होता तो लोगो को शहर में एक और न्यायालयीन कारीडोर मिल जाता। वही मार्तंड 3 को वहा शिफ्ट कर देते, जहा नया न्यायालय बना है तो एकेडमिक कारीडोर और बेहतर हो जाता। पर उस समय नेता जी की जिद ऐसी थी कि वे किसी युवा, छात्र या शिक्षक की सुनना ही नहीं चाहते थे।